”कैसे बना मूषक भगवान गणेश की सवारी“
भगवान गणेश का चूहा पूर्व जन्म में एक गंधर्व था, जिसका नाम क्रोंच था। एक बार देवराज इंद्र की सभा में गलती से क्रोंच का पैर मुनि वामदेव के ऊपर पड़ गया। मुनि वामदेव को लगा कि क्रोंच ने उनके साथ शरारत की है इसीलिए रूष्ठ होकर उन्होंने उसे चूहा बनने का श्राप दे दिया। उस श्राप के कारण क्रांेच एक चूहा बन चुका था, लेकिन विशालकाय था। एक बार वो महर्षि पराशर के आश्रम में पहुंच गया। वहां पहुंचकर उसने मिट्टी के सभी पात्र तोड़ डाले और उत्पात मचाने लगा।
उस वक्त महर्षि पराशर के आश्रम में भगवान गणेश भी मौजूद थे। गणेश जी ने उस मूषक को सबक सिखाने के लिए अपना अस्त्र फेंका। अस्त्र को अपनी तरफ बढ़ते हुए देख मूषक पाताल लोक पहुंच गया। अस्त्र की पकड़ से मूषक बेहोश हो गया, जैसे ही उसे होश आया उसने खुद को भगवान गणेश के सामने पाया। बिना देरी किए मूषक गणेश जी से अपने प्राणों की भीख मांगने लगा। गणेश जी मूषक की अराधना से खुश हो गए और कहा कि तुमने आश्रम में महर्षि पराशर का ध्यान भंग किया है। मूषक चुपचाप खड़ा रहा और कुछ नहीं बोला, फिर गणेश जी ने कहा कि शरणागत की रक्षा भी मेरा परम धर्म है इसलिए जो चाहो वरदान मांग लो। ये सुनकर मूषक अंहकार से भर उठा और भगवान गणेश से बोला कि यदि आप चाहें, तो मुझसे वर की याचना कर सकते हैं।
मूषक की गर्व भरी वाणी सुनकर गणेश जी मन ही मन मुस्कुराए और कहा कि यदि तेरा वचन सत्य है, तो तू मेरा वाहन बन जा। मूषक ने बिना देरी किए तथास्तु बोल दिया। वहीं भारी भरकम गजानन के भार से दबकर मूषक के प्राण संकट में आ गए। तब उसने गजानन से प्रार्थना की कि वो अपना भार उसके वहन करने योग्य बना लें। इस तरह मूषक का गर्व चूर चूर कर गणेश जी ने उसे अपना वाहन बना लिया।
गणेश जी का चूहे पर बैठना इस बात का संकेत है कि उन्होंने स्वार्थ पर विजय पाई है और जनकल्याण के भाव को अपने भीतर जागृत किया है।
आप का तिवारी परिवार
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