बुधवार, 4 नवंबर 2020

मूषक कैसे बने गणेश जी का सवारी

”कैसे बना मूषक भगवान गणेश की सवारी“
भगवान गणेश का चूहा पूर्व जन्म में एक गंधर्व था, जिसका नाम क्रोंच था। एक बार देवराज इंद्र की सभा में गलती से क्रोंच का पैर मुनि वामदेव के ऊपर पड़ गया। मुनि वामदेव को लगा कि क्रोंच ने उनके साथ शरारत की है इसीलिए रूष्ठ होकर उन्होंने उसे चूहा बनने का श्राप दे दिया। उस श्राप के कारण क्रांेच एक चूहा बन चुका था, लेकिन विशालकाय था। एक बार वो महर्षि पराशर के आश्रम में पहुंच गया। वहां पहुंचकर उसने मिट्टी के सभी पात्र तोड़ डाले और उत्पात मचाने लगा। 
उस वक्त महर्षि पराशर के आश्रम में भगवान गणेश भी मौजूद थे। गणेश जी ने उस मूषक को सबक सिखाने के लिए अपना अस्त्र फेंका। अस्त्र को अपनी तरफ बढ़ते हुए देख मूषक पाताल लोक पहुंच गया। अस्त्र की पकड़ से मूषक बेहोश हो गया, जैसे ही उसे होश आया उसने खुद को भगवान गणेश के सामने पाया। बिना देरी किए मूषक गणेश जी से अपने प्राणों की भीख मांगने लगा। गणेश जी मूषक की अराधना से खुश हो गए और कहा कि तुमने आश्रम में महर्षि पराशर का ध्यान भंग किया है। मूषक चुपचाप खड़ा रहा और कुछ नहीं बोला, फिर गणेश जी ने कहा कि शरणागत की रक्षा भी मेरा परम धर्म है इसलिए जो चाहो वरदान मांग लो। ये सुनकर मूषक अंहकार से भर उठा और भगवान गणेश से बोला कि यदि आप चाहें, तो मुझसे वर की याचना कर सकते हैं। 
मूषक की गर्व भरी वाणी सुनकर गणेश जी मन ही मन मुस्कुराए और कहा कि यदि तेरा वचन सत्य है, तो तू मेरा वाहन बन जा। मूषक ने बिना देरी किए तथास्तु बोल दिया। वहीं भारी भरकम गजानन के भार से दबकर मूषक के प्राण संकट में आ गए। तब उसने गजानन से प्रार्थना की कि वो अपना भार उसके वहन करने योग्य बना लें। इस तरह मूषक का गर्व चूर चूर कर गणेश जी ने उसे अपना वाहन बना लिया। 

गणेश जी का चूहे पर बैठना इस बात का संकेत है कि उन्होंने स्वार्थ पर विजय पाई है और जनकल्याण के भाव को अपने भीतर जागृत किया है।

आप का तिवारी परिवार 

ब्रामणो से डरते थे अंग्रज जाने क्यूँ

गुलामी के दिन थे। प्रयाग में कुम्भ मेला चल रहा था। एक अंग्रेज़ अपने द्विभाषिये के साथ वहाँ आया। गंगा के किनारे एकत्रित अपार जन समूह को देख अंग्रेज़ चकरा गया। 

उसने द्विभाषिये से पूछा, "इतने लोग यहाँ क्यों इकट्टा हुए हैं?"
 
द्विभाषिया बोला, "गंगा स्नान के लिये आये हैं सर।" 

अंग्रेज़ बोला, "गंगा तो यहां रोज ही बहती है फिर आज ही इतनी भीड़ क्यों इकट्ठा है?" 

द्विभाषीया: - "सर आज इनका कोई मुख्य स्नान पर्व होगा।" 
अंग्रेज़ :- " पता करो कौन सा पर्व है ?" 

द्विभाषिये ने एक आदमी से पूछा तो पता चला कि आज बसंत पंचमी है।

अंग्रेज़:-  "इतने सारे लोगों को एक साथ कैसे मालूम हुआ कि आज ही बसंत पंचमी है?"

द्विभाषिये ने जब लोगों से पुनः इस बारे में पूछा तो एक ने जेब से एक जंत्री निकाल कर दिया और बोला इसमें हमारे सभी तिथि त्योहारों की जानकारी है। 

अंग्रेज़ अपनी आगे की यात्रा स्थगित कर जंत्री लिखने वाले के घर पहुँचा। एक दड़बानुमा अंधेरा कमरा, कंधे पर लाल फटा हुआ गमछा, खुली पीठ, मैली कुचैली धोती पहने एक व्यक्ति दीपक की मद्धिम रोशनी में कुछ लिख रहा था। पूछने पर पता चला कि वो एक गरीब ब्राह्मण था जो जंत्री और पंचांग लिखकर परिवार का पेट भरता था। 

अंग्रेज़ ने अपने वायसराय को अगले ही क्षण एक पत्र लिखा :- "इंडिया पर सदा के लिए शासन करना है तो सर्वप्रथम ब्राह्मणों का समूल विनाश करना होगा सर क्योंकि जब एक दरिद्र और भूँख से जर्जर ब्राह्मण इतनी क्षमता रखता है कि दो चार लाख लोगों को कभी भी इकट्टा कर सकता है तो सक्षम ब्राह्मण क्या कर सकते हैं, गहराई से विचार कीजिये सर।" 
🙏
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और आप गहराई से बिचार 
आप का तिवारी परिवार 
जय श्री राम 

दूनीय की येही कहानी है

😥✅ एक बार एक लड़के ने एक सांप पाला , वो सांप से बहुत प्यार करता था उसके साथ ही घर में रहता .. एक बार वो सांप बीमार जैसा हो गया...