रविवार, 9 अगस्त 2020

असकंद पुराण का एक इस्लोक ने वैज्ञानिक को चैलेंज करता है जो आज तर्क हितकर करते हैं

मैं जो कहने जा रही  हूँ इसको ज़रा ध्यान से पढ़ियेगा। विश्वास है आप प्रभावित अवश्य होंगे। 
ऋग्वेद में एक श्लोक है जिसपर व्याख्या करते हुए कहा गया है : 
"तथा च स्मर्यते योजनानां सहस्त्रं द्वे द्वे शते द्वे च योजने एकेन निमिषार्धे- न क्रममाण नमोऽस्तुते- ॥"
अर्थात "हे सूर्यदेव, आप आधे निमेष में 2,202 योजन की यात्रा करते हैं, आपको नमन।"
2,202 योजन 3,18,94,042.81 मीटर के बराबर होता है। 
एक निमेष 16/75 सेकण्ड के बराबर होता है। 
इस श्लोक के अनुसार सूर्य के प्रकाश की गति निकलती है 2.9907 X 10^8 मीटर प्रति सेकण्ड। 
हमारे आधुनिक वैज्ञानिकों ने प्रकाश की गति निकली है जो है 2.9979 X 10^8 मीटर प्रति सेकण्ड। 
3500 साल पहले भारत के वैज्ञानिक प्रकाश की गति खोज चुके थे और यह सब हमारे ग्रंथों में अभिलिखित है। भारत की ज्ञाननिधि असीम है और इसे अभिलिखित किया गया था विश्व की सबसे वैज्ञानिक भाषा में - संस्कृत में। 
क्या हमें संस्कृत सीखनी चाहिए? यदि भारत की महानता एक खजाना है तो उसकी चाबी संस्कृत है। हमारे ऊपर हमारे महान पूर्वजों और आने वाली पीढ़ियों का ऋण है कि हम संस्कृत सीखें और सिखाएं।
धन्यवाद आप का तिवारी परिवार जय श्री राधे राधे 

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