देखिये फर्क कितना है कलाम और कसाब में।
मुसलमानो को कुछ कहने पर कलाम का नाम बीच में लाने वालो को करारा जवाब। #मुसलमानो की कभी थोडी सी #बुराई करते ही जो लोग #डाँअब्दुलकलाम को #बिच मै ले आते है !! तो , वो #सुन लौ बे !!
हम सम्मान करते है डा कलाम का
पर एक बात है ! कलाम ने अपनी जीवनी मै लिखा था की मैंने बचपन से श्रीमत् भगवत गीता पढी है
अगर वो बचपन से कुरान पढते तो वो कोई वैज्ञानिक नही होते वो भी मुह पर कपडा बांध कर जम्मू-कश्मीर मै हमारे सैनिको पर पत्थर बरसा रहै होते
रही बात उनके अविष्कारो की तो हम शुक्रगुजार है पर उन्होंने कोई अहसान नही किया!! वो सरकारी वैज्ञानिक थे अपने शोध व अविष्कारो के लिए तनख्वाह लेते थे
जो एक सरकारी कर्मचारी करता है !! उन्होंने भी वही काम किया है! !!
और शायद तुमको तो यह भी पता नही होगा की
सुप्रीम कोर्ट से ही दया याचिका माननीय राष्ट्रपति जी के पास जाती है व वो उसी पर अपनी सुनवाई कर सकते है
पर ...... थारे डाॅ कलाम ने सारे कानून व संविधान को दरकिनार करते हुये एक स्पेशल सेल बनाया था जिसमे केवल अल्पसंख्यको (90% मुस्लिम ) की ही समस्याऔ की जन सुनवाई की जाती था
क्यो भाई हम हिन्दू देश के नागरिक नही थे क्या
और डा कलाम के पिताजी हिन्दू थे। दंगो के समय बलपूर्वक धर्म परिवर्तन कराया गया।
किंतु उनके पिताजी ने बच्चों को हिन्दू ग्रंथो की शिक्षा जारी रखी। मंदिर भी जाते रहे।
इसलिये
डा कलाम के हर आविष्कार का नाम हिन्दू नाम है, देबताओ के नाम पर या उनके अस्त्र शस्त्र के नाम पर। परमाणु परीक्षण अनुसंधान केंद्र में जब अब्दुल कलाम कार्य करते थे तो उन्होंने परमाणु शस्त्रागारों के मुख्य कक्ष में कभी किसी मुसलमान कर्मचारी या किसी मुसलमान नौकर तक को उसके पास तक नहीं फटकने दिया था।
क्योकि उन्हें पता था मुस्लिम कितने बड़े जिहादी होते है , उन्हें पता था जिस पाकिस्तान ने उन्हें काफ़िर कह कर देश से निकाल दिया था , भारत के मुल्लो के दिल मे वो ही पाकिस्तान बसा है।
कलाम साहब ने भी दिल से इस्लाम छोड़ दिया था , लेकिन नाम नहीं बदला शायद इसका कारण अपने कार्यों के द्वारा अपनी कौम पर लगे देशद्रोह वाले दागों को कुछ हद तक मिटाना हो।
कलाम साहब प्रतीदिन योग करते थे, सितार बजाते थे और गीता का पाठ करते थे।
इसलिये सेक्युलर उनका नाम ले लेकर मुस्लिमो के गुण कभी न गाये।।
तो आशा है आपको कलाम और कसाब के बीच का फर्क समझ में आ गया होगा। ये था जवाब उन सेक्युलर जमात के नेताओ को जो हिन्दू मुस्लिम धर्मवाद कराके वोट की गन्दी राजनीति खेलते है ,और हम सब बड़ी ही आसानी से बिना कुछ सोचे समझे उनके इस फालतू खेल का एक मोहरा बन कर रह जाते है जिसका उपयोग सिर्फ खेल जीतने यानी की चुनाव जीतने के लिए बड़ी ही चालाकी के साथ किया जाता है,और फिर खेल ख़त्म होते ही यानी चुनाव जाते ही खेल के मुहरों का कोई भी अहमियत नहीं होती।
तो आशा है अब आप सभी कभी भी इस खेल के मोहरे नहीं बनेंगे।
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धन्यवाद !!!!!
जय हिन्द !!!!!!!
वन्दे मातरम !!!!
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