दो घंटे मोबाइल के साथ या दो घंटे माता पिता के साथ। क्या चुनेंगे आप ? आज की पीढ़ी की युवा सोच।
बस वहां बहुत मुश्किल से मिलती थी। एक छूट गई तो दूसरी कब आएगी कोई बता नहीं सकता था! उस दिन सुबह सुबह वीर जगा और बहुत जल्दी ही तैयार होकर निकल गया। लगभग एक घंटे चलने के बाद जब वो बस स्टॉप पहुंचा तो बस को आता हुआ देख उसकी आंखों में खुशी की लहर दौड़ गई। वो जैसे ही बस के अंदर पहुंचा, उसने देखा कोई सीट खाली नहीं थी, सिर्फ एक सीट को छोड़ के जो कि महिला सीट थी! कंडक्टर अंकल उसे पहचानते थे क्योंकि वो पिछले एक महीने से रोज़ इसी बस से जाता था और पहले कुछ दिन उसकी उनसे अच्छी खासी बात भी हुई थी। वो भी वीर से उसके दिन और काम के बारे में पूछते रहते थे और भला पूछे भी क्यों नहीं जिस दिन उसकी इंटरव्यू थी तो उन्होंने उसे बेस्ट ऑफ लक जो बोला था, बाद में वीर ने उन्हें बताया था कि वो बेस्ट ऑफ लक ही उसके लिए पहला और आखिरी बेस्ट ऑफ लक था उस दिन के लिए! वो खड़ा था कि तभी कंडक्टर अंकल ने मुस्कुराते हुए उससे कहा- अरे बेटा बैठ जाओ उस सीट पे! उसने ना का इशारा किया! उन्होंने कहा- बैठ जाओ, कोई अगर लेडी आएगी तो उठ जाना, अभी तब तक तो बैठ जाओ! वीर खिड़की से बाहर देखता हुआ ये सोच रहा था कि जिंदगी भी कितनी अजीब है न, कोई अनजान इंसान भी कितना अपना हो सकता है और कोई अपना भी कितना अनजान और पराया हो सकता है! खिड़की वाली सीट पे बैठे हुए उसकी आंखें कब नींद के साथ खेलने लगीं उसे पता ही नहीं चला। तभी कुछ देर बाद एक स्टॉप पे कुछ लड़कियां बस में सवार हुईं, सबके हाथ में महेंगे महेंगे मोबाइल फोन थे और वो उस खिड़की वाली सीट पे पहुंच के चिल्लाईं- ऐ लड़के! उठो! किसकी सीट पे बैठे हो पता है कुछ। वीर चौंक के उठा और खड़ा हो गया। सब लड़कियां उसपे ज़ोर ज़ोर से हंसने लगीं और उसकी मासूम सॉरी उनके निर्लज ठहाके में कहीं खो गयी थी! देखो न कैसे सोने का बहाना बना रखा था, इडियट! अरे छोड़ो न गाँव के लोग ऐसे ही होते हैं, गवार! इनके माँ बाप खुद पढ़े लिखे नहीं होते इन्हें क्या सिखाएंगे! वीर को सबकुछ सुनाई दे रहा था पर वो शांत था लेकिन कंडक्टर अंकल से अब बात बर्दाश्त नहीं हो रही थी इसलिए वीर के इशारे को नज़रअंदाज़ करते हुए वो अंत में बोल ही पड़े- हाँ आपलोग सही ही बोल रहीं हैं उसके माँ बाप उसे क्या सिखाएंगे और वैसे भी उसके माँ बाप ने तो उसे पैदा कर के ही छोड़ दिया था! शायद बहुत पढ़े लिखे और मॉडर्न ही होंगे! 'ओह! गॉड! वो अनाथ है! हमें नहीं पता था! सॉरी सॉरी!' जी वो अनाथ है कि नहीं मुझे नहीं पता लेकिन आपमें से आखिरी बार किसने और कब अपने मम्मी पापा के साथ बिना मोबाइल फोन हाथ में लिए 2-3 घंटे बिताए थे, मुझे बताएं कृपया! अचानक से उन सारी लड़कियों की बोलती बंद हो गई और तभी कंडक्टर अंकल ने एक और बात बोल डाली- खुद से पूछिए आखिर अनाथ कौन है? जिसके माँ बाप नहीं या जिसके माँ बाप तो हैं लेकिन उसका 2 घंटा भी उसके माँ बाप का नहीं! बस से उतरते हुए वीर को ये आखिरी बात सुनाई दे गई और उसे अपने बचपन के अनमोल दिन याद आने लगे जब उससे और उसके दोस्तों से मिलने orphanage में कई अनजान लोग आया करते थे और घंटों उनके साथ खेला करते थे!
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आप क्या चुनेंगे ये हमें कमेंट करके जरूर बताये ताकि हमें भीं पता चले आप किस किस्म के हैं अनाथ वीर या स्मार्टफोन्स वाली युवतिया। सोच आपकी है आप किस तरह बनना चाहते हैं। कमेंट में अपना जवाब बताना न भूले।
जय हिन्द !!!
वन्दे मातरम !!!
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