सूतक का वैज्ञानिक आधार
सूतक काल के बारे में तो सभी जानते होंगे पर यह नहीं जानते होंगे कि इस दौरान की गई क्रियाओं का वैज्ञानिक आधार क्या है। सूतक दो प्रकार का होता है। १-किसी की मृत्यु हो जाने पर परिवार को लगने वाला सूतक
२- संतानोत्पत्ति के बाद मां को लगने वाला सआइए जानते हैं पहले सूतक के बारे में। किसी की मृत्यु हो जाने पर उसके शव को दक्षिण दिशा की ओर पैर रखकर लिटाया जाता है। देखा तो सबने होगा पर नहीं जानते होंगे कि ऐसा क्यों होता है। ऐसा इसलिए किया जाता है कि यमराज का स्थान दक्षिणी दिशा में होता है। एक और कारण है।
लगता है। साथ-साथ परिवार को भी लग जाता है। अंतिम संस्कार के बाद वापस लौटने पर साथ गये सभी लोगों को नीम की पत्तियां छिलाई जाती हैं।इसका कारण भी वही है। श्मशान में उड़ते वायरस का असर न पड़े इसलिए सबको नीम की पत्तियां या लाल मिर्च दांतों से कुपटने के लिए दिया जाता है
लगता है। साथ-साथ परिवार को भी लग जाता है। अंतिम संस्कार के बाद वापस लौटने पर साथ गये सभी लोगों को नीम की पत्तियां छिलाई जाती हैं।इसका कारण भी वही है। श्मशान में उड़ते वायरस का असर न पड़े इसलिए सबको नीम की पत्तियां या लाल मिर्च दांतों से कुपटने के लिए दिया जाता है
: इसके बाद शुरू होता है सूतक जिसे आम बोलचाल में शुद्धक कहते हैं। इसमें अग्नि संस्कार करने वाले जिसे दगदिहा कहते हैं को दस दिनों तक बाहर मडहे या बैठका में संन्यासी की तरह रहना पड़ता है।उसका बिस्तर तख्त बर्तन अलग कर दिया जाता है।दिन भर फलाहार रहने के बाद शाम को सूर्यास्त
कर की गई पूजा अर्चना देवी देवताओं को प्राप्त नहीं होती।
शहरों में समयाभाव और स्थानाभाव के कारण यह संभव नहीं होता पर गांवों में यह क्रिया पूरे विधि-विधान से होती है। महिलाओं को इस सूतक काल में हल्दी मिश्रित दूध हल्दी सोंठ मिश्रित गुड़ खिलाया जाता है। सूखा मेवा आद अन्य पौष्टिक आहार दिया जाता है।
आप का तिवारी परीवार
जय राम जी की
जय श्री राम
धन्यवाद मित्रों