शनिवार, 26 जून 2021

बुद्धि 😅😅😅😅 विक्रय 😅😅😅 😅 केंद्र

🍄🍄🍄🍄🍄🍄🍄🍄🍄🍄🍄

            *बुद्धि विक्रय केंद्र*

कुम्भ मेले में एक स्टाल लगा था जिस पर लिखा था ,  बुद्धि विक्रय केंद्र "  !

लोगो की भीड उस स्टाल पर लगी थी !

मै भी पहुंचा तो देखा कि उस स्टाल पर 
अलग अलग शीशे के जार में कुछ रखा
हुआ था !

एक जार पर लिखा था-
 ब्राह्मण की बुद्धि- 100 रुपये किलो

दूसरे जार पर लिखा था - 
गुर्जरों  की बुद्धि- 1000 रुपये किलो

तीसरे जार पर लिखा था- 
 दलितों की बुद्धि- 2000 रुपये किलो

चौथे जार पर लिखा था- 
 मुस्लिम की बुद्धि- 50000 रुपये किलो

मैं हैरान कि इस दुष्ट ने ब्राह्मण  की बुद्धि की इतनी कम कीमत क्यों लगाई? 

गुस्सा भी आया कि इसकी इतनी मजाल, 
अभी मजा चखाता हूँ।

गुस्से से लाल मै भीड को चीरते हुआ..
दुकानदार के पास पहुंचा और 
उससे पूछा कि तेरी हिम्मत कैसे हुयी जो ब्राह्मण  की बुद्धि इतनी सस्ती बेचने की ?

उसने मेरी तरफ देखा और मुस्कराया, 
हुजूर बाजार के नियमानुसार...

जो चीज ज्यादा उत्पादित होती है, 
उसका रेट गिर जाता है !

आपलोगो की इसी बहुतायत बुद्धि 
के कारण ही तो आपलोग दीनहीन पड़े हैं !

राजनीति में कोई पूछने वाला भी नहीं है आपलोगों को..

स्वर्णिम इतिहास होने के बावजूद विकास की धारा से हट चुके हैं आप लोग....

सब एक दूसरे की टांग खींचते हैं 
और सिर्फ अपना नाम बडा देखना 
चाहते हैं...

किसी को सहयोग नहीं करते...
काम करने वाले की आलोचना करते है... 
और नीचा दिखाते हैं...!

आज हर जाति में एकता देखने को मिलती है सिर्फ ब्राह्मण  को छोड़कर...!

जाइये साहब...पहले अपनी कौम को समझाइये और 
मुकाम हासिल करिए..!

और फिर आइयेगा मेरे पास... तो आप
जिस रेट में कहेंगे, उस रेट में आप लोगों  
 की बुद्धि बेचूंगा..!

मेरी जुबान पर ताला लग गया और 
मैं अपना सा मुंह लेकर चला आया !

इस छोटी सी कहानी के माध्यम से 
जो कुछ मैं कहना चाहता हूं,
आशा करता हूँ कि समझने वाले 
समझ गये होंगे !
 
और जो ना समझना चाहे 
वो अपने आपको 
बहुत बडा खिलाडी 
समझ सकते हैं..!

 *(नोट : कृपया इस पोस्ट को केवल ब्राह्मणों  के बीच आगे बढ़ाएँ और सुधार हेतु चर्चा करें )*    
 *🍁🍁जय श्री परशुराम
आप का तिवारी परिवार 

गुरुवार, 17 जून 2021

गहन रिसर्च के बाद एक दोहा अर्थ मील पाया है

*कल सुंदरकांड पढ़ते हुए 25 वें दोहे पर थोड़ा रुक गया । तुलसीदास ने सुन्दर कांड में,  जब हनुमान जी ने लंका मे आग लगाई थी, उस प्रसंग पर लिखा है -*

*हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।*
*अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास।।25।।*

अर्थात : जब हनुमान जी ने लंका को अग्नि के हवाले कर दिया तो --
*भगवान की प्रेरणा से उनपचासों पवन चलने लगे।*
*हनुमान जी अट्टहास करके गर्जे और आकार बढ़ाकर आकाश से जा लगे।*

*मैंने सोचा कि इन उनचास मरुत का क्या अर्थ है ? यह तुलसी दास जी ने भी नहीं लिखा। फिर मैंने सुंदरकांड पूरा करने के बाद समय निकालकर 49 प्रकार की वायु के बारे में जानकारी खोजी और अध्ययन करने पर सनातन धर्म पर अत्यंत गर्व हुआ। तुलसीदासजी के वायु ज्ञान पर सुखद आश्चर्य हुआ, जिससे शायद आधुनिक मौसम विज्ञान भी अनभिज्ञ है ।*
        
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि *वेदों में वायु की 7 शाखाओं के बारे में विस्तार से वर्णन मिलता है*। अधिकतर लोग यही समझते हैं कि वायु तो एक ही प्रकार की होती है, लेकिन उसका रूप बदलता रहता है, जैसे कि ठंडी वायु, गर्म वायु और समान वायु, लेकिन ऐसा नहीं है। 

*दरअसल, जल के भीतर जो वायु है उसका वेद-पुराणों में अलग नाम दिया गया है और आकाश में स्थित जो वायु है उसका नाम अलग है। अंतरिक्ष में जो वायु है उसका नाम अलग और पाताल में स्थित वायु का नाम अलग है। नाम अलग होने का मतलब यह कि उसका गुण और व्यवहार भी अलग ही होता है। इस तरह वेदों में 7 प्रकार की वायु का वर्णन मिलता है।*

*ये 7 प्रकार हैं- 1.प्रवह, 2.आवह, 3.उद्वह, 4. संवह, 5.विवह, 6.परिवह और 7.परावह।*
 
1. प्रवह : पृथ्वी को लांघकर मेघमंडलपर्यंत जो वायु स्थित है, उसका नाम प्रवह है। इस प्रवह के भी प्रकार हैं। यह वायु अत्यंत शक्तिमान है और वही बादलों को इधर-उधर उड़ाकर ले जाती है। धूप तथा गर्मी से उत्पन्न होने वाले मेघों को यह प्रवह वायु ही समुद्र जल से परिपूर्ण करती है जिससे ये मेघ काली घटा के रूप में परिणत हो जाते हैं और अतिशय वर्षा करने वाले होते हैं। 
 
2. आवह : आवह सूर्यमंडल में बंधी हुई है। उसी के द्वारा ध्रुव से आबद्ध होकर सूर्यमंडल घुमाया जाता है।
 
3. उद्वह : वायु की तीसरी शाखा का नाम उद्वह है, जो चन्द्रलोक में प्रतिष्ठित है। इसी के द्वारा ध्रुव से संबद्ध होकर यह चन्द्र मंडल घुमाया जाता है। 
 
4. संवह : वायु की चौथी शाखा का नाम संवह है, जो नक्षत्र मंडल में स्थित है। उसी से ध्रुव से आबद्ध होकर संपूर्ण नक्षत्र मंडल घूमता रहता है।
 
5. विवह : पांचवीं शाखा का नाम विवह है और यह ग्रह मंडल में स्थित है। उसके ही द्वारा यह ग्रह चक्र ध्रुव से संबद्ध होकर घूमता रहता है। 
 
6. परिवह : वायु की छठी शाखा का नाम परिवह है, जो सप्तर्षिमंडल में स्थित है। इसी के द्वारा ध्रुव से संबद्ध हो सप्तर्षि आकाश में भ्रमण करते हैं।
 
7. परावह : वायु के सातवें स्कंध का नाम परावह है, जो ध्रुव में आबद्ध है। इसी के द्वारा ध्रुव चक्र तथा अन्यान्य मंडल एक स्थान पर स्थापित रहते हैं।
 
   *इन सातो वायु के सात सात गण हैं जो निम्न जगह में विचरण करते हैं-*

 ब्रह्मलोक, इंद्रलोक, अंतरिक्ष, भूलों की पूर्व दिशा, भूलोक की पश्चिम दिशा, भूलोक की उत्तर दिशा और भूलोक कि दक्षिण दिशा। इस तरह  7*7=49। कुल 49 मरुत हो जाते हैं जो देव रूप में विचरण करते रहते हैं।
  
 *है ना अद्भुत ज्ञान। हम अक्सर रामायण, भगवद् गीता पढ़ तो लेते हैं परंतु उनमें लिखी छोटी-छोटी बातों का गहन अध्ययन करने पर अनेक गूढ़ एवं ज्ञानवर्धक बातें ज्ञात होती हैं।*जय श्री राम
🙏
आप का तिवारी परिवार जय श्री राम 

दूनीय की येही कहानी है

😥✅ एक बार एक लड़के ने एक सांप पाला , वो सांप से बहुत प्यार करता था उसके साथ ही घर में रहता .. एक बार वो सांप बीमार जैसा हो गया...