बुधवार, 16 जनवरी 2019

मैंकापरस्त राजनीति इसे ही कहते है जान से मारने वाले से गठबंधन करना पडे

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पता नहीं मुलायम सिंह यादव के दिल पर आज क्या गुज़र रही होगी । गौरतलब है कि बसपा के समर्थन से जब मुलायम सिंह यादव मुख्य मंत्री बने थे तब बहुत चाहा था उन्हों ने कि मायावती उप मुख्य मंत्री बन जाएं । ताकि जैसे-तैसे वह काबू में रहें । लेकिन मायावती ने उप मुख्य मंत्री बनने से बारंबार इंकार किया । मुलायम के काबू में कभी नहीं आईं । हर बार दिल्ली से कांशीराम के साथ लखनऊ आतीं और मुलायम से मोटी रकम वसूल कर वापस हो जातीं । और जब बहुत हो गया तो मुलायम ने हाथ खड़ा कर दिया। नियमित पैसा देने से इंकार कर दिया । नाराज हो कर कांशीराम ने समर्थन वापसी के संकेत देने शुरू किए । अंतिम बातचीत के लिए कांशीराम और मायावती एक बार फिर लखनऊ आए । स्टेट गेस्ट हाऊस में ठहरे । मुलायम को बुलवाया । मुलायम पेश हुए । कमरे में दो ही कुर्सी थी । एक पर कांशीराम आसीन थे , दूसरे पर मायावती । मुख्य मंत्री मुलायम सिंह यादव खड़े-खड़े बात करते रहे ।
जाने क्या बात हुई कि मुलायम सिंह ने बात ही बात में खड़े-खड़े अपने कान पकड़ लिए । मायावती , कांशीराम के सामने कान पकड़े खड़े मुलायम की फ़ोटो खिंचवा लिया कांशीराम ने और उसे लखनऊ के दैनिक जागरण अख़बार में छपवा दिया । कांशीराम तो दिल्ली चले गए थे पर पैसा उगाही के लिए मायावती लखनऊ में डटी रही थीं । फ़ोटो देखते ही सपा मुखिया मुलायम सहित सपा के गुंडों का खून खौल गया । मुलायम सिंह का संकेत मिलते ही सपाई गुंडों ने 2 जून , 1994 की सुबह-सुबह गेस्ट हाऊस में ठहरीं मायावती पर हमला बोल दिया । इरादा मायावती की हत्या का था । लेकिन उस समय गेस्ट हाऊस में उपस्थित भाजपा विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी ने बड़ी फुर्ती से मायावती को उन के कमरे में धकेल कर बंद कर दिया। जिसे मायावती ने भी भीतर से बंद कर लिया । मायावती के कमरे के फोन का तार काट दिया गया । पर मायावती के पास पेजर था । वह पेजर का सीमित उपयोग करती रहीं। एक दलित पुलिस अफसर विजय भूषण जो उस समय सी ओ हज़रतगंज थे , लगातार वायरलेस मेसेज करते रहे , जिसे सुनने वाला कोई नहीं था । आज के डी जी पी , उत्तर प्रदेश , ओ पी सिंह तब लखनऊ के एस एस पी हुआ करते थे , वह भी ख़ामोश थे । लेकिन मायावती का सौभाग्य था कि जब गेस्ट हाऊस पर सपाई गुंडे मायावती की हत्या के लिए हमलावर थे , ज़ी न्यूज की टीम वहीँ थी । पर इस से बेखबर सपाई गुंडे अपना काम करते रहे थे । न्यूज़ में यह घटना देखते ही उसी दिन अटल बिहारी वाजपेयी ने यह मामला लोकसभा में उठा दिया । नतीज़े में मायावती को भारी सुरक्षा मिल गई थी ।
मायावती की जान बच गई थी । बसपा के समर्थन वापसी से मुलायम सरकार का पतन हो चुका था । जल्दी ही मायावती अटल जी के आशीर्वाद से उत्तर प्रदेश की मुख्य मंत्री बन गईं । अटल जी के आशीर्वाद और भाजपा की मदद से तीन बार मुख्य मंत्री बनी मायावती को एक मौका जब मिला कि वह अटल जी के प्रति कृतज्ञता जताएं तब उन्हों ने कृतघ्नता जताई । अटल जी को लोकसभा में समर्थन देने का वादा कर के ऐन समय पर मुकर गईं । अटल जी की सरकार गिर गई थी । जीवनदान और राजनीतिक जीवनदान देने वाले अटल जी की जब मायावती नहीं हुईं तो अखिलेश यादव या किसी और की कितनी होंगी यह आने वाला समय बताएगा । रही बात अखिलेश यादव की तो वह जब अपने पिता मुलायम सिंह यादव के नहीं हुए , पिता की पीठ में छुरा घोंप दिया तो किस के होंगे भला । जो हो , अभी तो मोदी की बाढ़ में अपनी-अपनी जान बचाने के लिए गठबंधन के पेड़ पर सांप और नेवले एक साथ खड़े हैं। देखना दिलचस्प होगा कि बहता कौन है और बचता कौन है । या कि बाढ़ ही विदा हो जाती है । कौन जानता है कि कब क्या होगा । राजनीति में कब क्या हो जाए , कौन किस का हो जाए , कौन जानता है भला ।आप   का तिवारी  परिवार ने लिखा ही है :
उसी को जीने का हक़ है जो इस ज़माने में
इधर का लगता रहे और उधर का हो जाए ।
- 

मंगलवार, 8 जनवरी 2019

मास्टर स्टोक इसे कहते है.

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कापी की कुछ आच्छी बातें
ये घटना 2015 की है जब उत्तर प्रदेश में ग्राम प्रधानी के चुनाव चल रहे थे...हस्तिनापुर के पास एक गुज्जर बहुल गांव में एक गुज्जर परिवार मे कुल 17 वोट थे.. अब आप सभी जानते हो कि ग्राम प्रधानी के इलेक्शन में 17 वोट बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं..इसलिए प्रधान पद का प्रत्येक उम्मीदवार उस घर को पूरी महत्त्वता दे रहा था...घर का मुखिया एक बुजुर्ग था जिसे शाम को पीने का शौक भी था
अब गांव देहात से जुड़ा हर व्यक्ति यह भी जानता है कि प्रधानी के चुनाव में शराब का बहुत बड़ा महत्त्व होता है तो इस गांव में भी शराब की दावतें खूब चल रही थी तो एक शाम एक प्रत्याशी पूरी एक पेटी शराब लेकर इस मुखिया के घर पहुंच जाता है मुखिया 17 वोट उसी प्रत्याशी को डलवाने का आश्वासन देकर वो शराब की पेटी रख लेता है....मुखिया के घर से निकलते ही इस प्रत्याशी को प्रधानी पद के दो अन्य प्रतिद्वंदी टकरा जाते हैं और पूछते हैं कि क्या तुम भी मुखिया के यहां शराब की पेटी देकर आये हो?
इस मुलाकात में भेद खुलता है कि मुखिया ने तीनो प्रत्याशीयों से वोट का आश्वासन देकर पूरी 3 पेटी शराब कब्जे में ले ली है
तीनो का पारा चढ़ जाता है कि मुखिया ने शराब की पेटी तो तीनों से ले ली...लेकिन वोट तो किसी एक को ही मिलेगी....इसका मतलब है मुखिया हममें से किन्ही दो को बेवकूफ बना रहा है
तीनो इकठ्ठे ही मुखिया के घर पर पहुंच गए और दूध का दूध और पानी का पानी करने निर्णय लिया
मुखिया के घर जाकर तीनो ने कहा कि “बाबा तुम वोट तो किसी एक को ही दोगे... लेकिन शराब की पेटी तुमने हम तीनों ने ले ली....इसका मतलब है कि तुम हमे मूर्ख बना रहे हो?...जिसको वोट देनी है उसकी पेटी रखो और बाकी दो लोगों की पेटियां वापस करो!
मुखिया ने हामी में सिर हिलाया और कहा कि...हां वोट तो किसी एक को ही दूंगा लेकिन शराब की पेटियां मैंने तुम तीनो से ली हैं...लेकिन अगर तुम तीनो अभी जानना चाहते हो कि मैं वोट किसे दूंगा तो मैं अभी इसका फैसला कर देता हूँ....तीनों प्रत्याशियों के कहा कि हां अभी बताओ
मुखिया ने अपने एक पोते को आवाज लगाकर बुलाया और अंदर कमरे में रखी तीनो शराब की पेटियां लाने को कहा
पोता..अंदर से शराब की तीन पेटियां उठाकर लाया और उनके बीच मे रख दी....मुखिया बोला “क्यों भाई... यही हैं ना तुम्हारी पेटियां"....तीनो ने सहमति में गर्दन हिलाई.....
मुखिया बोला...“अभी फैसला हो जाता है कि इस घर की 17 वोट तुम तीनों में किसको मिलेंगी....तुम तीनो में से जिसे भी लगता है कि मैं उसे वोट नही दूंगा अपनी शराब की पेटियां उठाकर ले जाये....जिसकी पेटी बचेगी....मेरे घर की 17 वोट उसकी!!”
अब मुखिया के इस मास्टर स्ट्रोक से तीनों प्रत्याशी हतप्रभ थे.... क्योंकि अब जो भी प्रत्याशी पहले शराब की पेटी उठाएगा...उसको तो वोट कतई ना मिलेगी और 17 वोट खोने को कोई तैयार नही था....तीनो एक दूसरे की शक्ल देख रहे थे कि पहले पेटी कौन उठाये....लेकिन उठाने को कोई भी तैयार नही था....बहरहाल तीनो ने कहा कि बाबा...पेटी तू ही रख और जिसे चाहे वोट कर दे
गरीब सामान्य वर्ग के लिए 10% आरक्षण देकर मोदी ने भी ऐसा ही एक मास्टर स्ट्रोक खेला है...सारी विपक्षी पार्टियां इसे चुनावी स्टंट या राजनैतिक स्टंट बताकर और इसकी घोषणा के समय को लेकर आलोचना कर रही हैं...लेकिन संसद में इस बिल का विरोध करना यह तय कर देगा...की सामान्य वर्ग का 15% वोट उस विरोधी पार्टी को तो कतई नही मिलेगा....और 15% वोटबैंक से कोई पंगा लेना नही चाहता....कांग्रेस ने मजबूरी में सही लेकिन संसद में बिल का समर्थन करने की घोषणा कर दी है केजरीवाल ने भी अनमने दिल से सही लेकिन समर्थन किया है....अभी यह पोस्ट लिखते-लिखते TV पर मायावती की प्रेस कांफ्रेंस भी देख रहा हूँ कि कैसे वह एक तरफ मोदी और भाजपा को कोस भी रही है और इस 10% आरक्षण का समर्थन भी कर रहीं है..
इन्हें न उगलते बन रहा है न निगलते.......यही है मोदी का मास्टर स्ट्रोक.....और अगले 2 महीने में आप ऐसे ही अन्य स्ट्रोक्स की उम्मीद भी कर सकते हैं.....क्योंकि मोदी ने पहले ही कहा था...की वह साढ़े चार साल केवल काम करेंगें...और कार्यकाल के अंत मे निखालिस राजनीति करेंगें।  
आप का तिवारी परिवार

बुधवार, 2 जनवरी 2019

महा कूम्भ का कुछ अंस इस परकार हैं

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*"क्यों कुंभ का मेला 12 साल में एक बार लगता है"*

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार इन्द्र देवता ने महर्षि दुर्वासा को रास्ते में मिलने पर जब प्रणाम किया तो दुर्वासाजी ने प्रसन्न होकर उन्हें अपनी माला दी, लेकिन इन्द्र ने उस माला का आदर न कर अपने ऐरावत हाथी के मस्तक पर डाल दिया। जिसने माला को सूंड से घसीटकर पैरों से कुचल डाला। इस पर दुर्वासाजी ने क्रोधित होकर इन्द्र को श्रीविहीन होने का श्राप दिया। इस घटना के बाद इन्द्र घबराए हुए ब्रह्माजी के पास गए। ब्रह्माजी ने इन्द्र को लेकर भगवान विष्णु के पास गए और उनसे इन्द्र की रक्षा करने की प्रार्थना की। भगवान ने कहा कि इस समय असुरों का आतंक है। इसलिए तुम उनसे संधि कर लो और देवता और असुर दोनों मिलकर समुद्र मंथन कर अमृत निकालों। जब अमृत निकलेगा तो हम तुम लोगों को अमृत बांट देंगे और असुरों को केवल श्रम ही हाथ मिलेगा।
पृथ्वी के उत्तर भाग मे हिमालय के समीप देवता और दानवों ने समुद्र का मन्थन किया। इसके लिए मंदराचल पर्वत को मथानी और नागराज वासुकि को रस्सी बनाया गया। जिसके फलस्वरूप क्षीरसागर से पारिजात, ऐरावत हाथी, उश्चैश्रवा घोड़ा रम्भा कल्पबृक्ष शंख, गदा धनुष कौस्तुभमणि, चन्द्र मद कामधेनु और अमृत कलश लिए धन्वन्तरि निकलें। इस कलश के लिए असुरों और दैत्यों में संघर्ष शुरू हो गया। अमृत कलश को दैत्यों से बचाने के लिए देवराज इन्द्र के पुत्र जयंत बृहस्पति, चन्द्रमा, सूर्य और शनि की सहायता से उसे लेकर भागे। यह देखकर दैत्यों ने उनका पीछा किया। यह पीछा बारह दिनों तक होता रहा। देवता उस कलश को छिपाने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान को भागते रहे और असुर उनका पीछा करते रहे।
इस भागदौड़ में देवताओं को पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करनी पड़ी। इन बारह दिनों की भागदौड़ में देवताओं ने अमृत कलश को हरिद्वार, प्रयाग, नासिक तथा उज्जैन नामक स्थानों पर रखा। इन चारों स्थानों में रखे गए कलश से अमृत की कुछ बूंदे छलक पड़ी। अंत में कलह को शांत करने के लिए समझौता हुआ। भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर दैत्यों को भरमाए रखा और अमृत को इस प्रकार बांटा कि दैत्यों की बारी आने तक कलश रिक्त हो गया। देवताओं का एक दिन मनुष्य के एक वर्ष के बराबर माना गया है। इसलिए हर 12 वें वर्ष कुंभ की परंपरा है।
   
*जय श्रीराधे कृष्णा*

🌷🌻🌷🌻🌷🌻🌷आप का तिवारी परिवार

दूनीय की येही कहानी है

😥✅ एक बार एक लड़के ने एक सांप पाला , वो सांप से बहुत प्यार करता था उसके साथ ही घर में रहता .. एक बार वो सांप बीमार जैसा हो गया...