गुरुवार, 25 सितंबर 2025

दूनीय की येही कहानी है

😥✅ एक बार एक लड़के ने एक सांप पाला , वो सांप से बहुत प्यार करता था उसके साथ ही घर में रहता .. एक बार वो सांप बीमार जैसा हो गया उसने खाना खाना भी छोड़ दिया था , यहाँ तक कई दिनों तक उसने कुछ नहीं खाया तो वो लड़का परेशान हुआ और उसे वेटरिनरी डॉ के यहाँ ले के गया .... डॉ ने सांप का चैक अप किया और उस लड़के से पूछा " क्या ये सांप आपके साथ ही सोता है ?" उस लड़के ने बोला हाँ .... डॉ ने बोला आपसे बहुत सट के सोता है लड़का बोला हाँ ............ डॉ ने पूछा क्या रात को ये सांप अपनी पूरी बॉडी को स्ट्रेच करता है ...?

ये सुन कर लड़का चौंका उसने कहा हाँ डॉ .. ये रात को अपनी बॉडी को बहुत बुरी तरह स्ट्रेच करता है और मुझसे इसकी इतनी बुरी हालत देखी नहीं जाती ,, और मैं किसी भी तरह से इसका दुःख दूर नहीं कर पाता ........

डॉ ने कहा .... इस सांप को कोई बीमारी नहीं है ... और ये जो रात को तुम्हारे बिल्कुल बगल में लेट कर अपनी बॉडी को स्ट्रेच करता है वो दरअसल तुम्हें निगलने के लिए अपने शरीर को तुम्हारे बराबर लम्बा करने की कोशिश करता है .... वो लगातार ये परख रहा है कि तुम्हारे पूरे शरीर को वो ठीक से निगल पायेगा या नहीं और निगल लिया तो पचा पायेगा या नहीं .............

इसलिए इस घटना से हमें ये शिक्षा मिलती है कि जो आपके साथ हर वक्त रहते हैं .... जिनके साथ आप खाते पीते उठते बैठते सोते हैं ...... जरुरी नहीं कि वो भी आपको उतना ही प्यार करते हो जितना आप उन्हें प्यार करते हैं हो सकता है वो आपको निगलने के लिए अपना आकार धीरे-धीरे बढ़ा रहा हो और आप निरे भावुक होकर उसकी दीन हीन दिशा को देखकर द्रवित हो रहे हो..🙁😔
ये आज का सच है कृपया बच कर रहे

पोस्ट लेखक -आप का तिवारी परिवार 


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शनिवार, 28 जून 2025

सभी ब्रामण का गोत्र कैसे और कहाँ उत्पत्ति हुई

सरयूपारीण ब्राहमणों के मुख्य गाँव : 

गर्ग (शुक्ल- वंश)

गर्ग ऋषि के तेरह लडके बताये जाते है जिन्हें गर्ग गोत्रीय, पंच प्रवरीय, शुक्ल बंशज  कहा जाता है जो तेरह गांवों में बिभक्त हों गये थे| गांवों के नाम कुछ इस प्रकार है|

(१) मामखोर (२) खखाइज खोर  (३) भेंडी  (४) बकरूआं  (५) अकोलियाँ  (६) भरवलियाँ  (७) कनइल (८) मोढीफेकरा (९) मल्हीयन (१०) महसों (११) महुलियार (१२) बुद्धहट (१३) इसमे चार  गाँव का नाम आता है लखनौरा, मुंजीयड, भांदी, और नौवागाँव| ये सारे गाँव लगभग गोरखपुर, देवरियां और बस्ती में आज भी पाए जाते हैं|

उपगर्ग (शुक्ल-वंश) 

उपगर्ग के छ: गाँव जो गर्ग ऋषि के अनुकरणीय थे कुछ इस प्रकार से हैं|

बरवां (२) चांदां (३) पिछौरां (४) कड़जहीं (५) सेदापार (६) दिक्षापार

यही मूलत: गाँव है जहाँ से शुक्ल बंश का उदय माना जाता है यहीं से लोग अन्यत्र भी जाकर शुक्ल     बंश का उत्थान कर रहें हैं यें सभी सरयूपारीण ब्राह्मण हैं|

गौतम (मिश्र-वंश)

गौतम ऋषि के छ: पुत्र बताये जातें हैं जो इन छ: गांवों के वाशी थे|

(१) चंचाई (२) मधुबनी (३) चंपा (४) चंपारण (५) विडरा (६) भटीयारी

इन्ही छ: गांवों से गौतम गोत्रीय, त्रिप्रवरीय मिश्र वंश का उदय हुआ है, यहीं से अन्यत्र भी पलायन हुआ है ये सभी सरयूपारीण ब्राह्मण हैं|

उप गौतम (मिश्र-वंश)

उप गौतम यानि गौतम के अनुकारक छ: गाँव इस प्रकार से हैं|

(१)  कालीडीहा (२) बहुडीह (३) वालेडीहा (४) भभयां (५) पतनाड़े  (६) कपीसा

इन गांवों से उप गौतम की उत्पत्ति  मानी जाति है|

वत्स गोत्र  ( मिश्र- वंश)

वत्स ऋषि के नौ पुत्र माने जाते हैं जो इन नौ गांवों में निवास करते थे|

(१) गाना (२) पयासी (३) हरियैया (४) नगहरा (५) अघइला (६) सेखुई (७) पीडहरा (८) राढ़ी (९) मकहडा

बताया जाता है की इनके वहा पांति का प्रचलन था अतएव इनको तीन के समकक्ष माना जाता है|

कौशिक गोत्र  (मिश्र-वंश)

तीन गांवों से इनकी उत्पत्ति बताई जाती है जो निम्न है|

(१) धर्मपुरा (२) सोगावरी (३) देशी

बशिष्ट गोत्र (मिश्र-वंश)

इनका निवास भी इन तीन गांवों में बताई जाती है|

(१) बट्टूपुर  मार्जनी (२) बढ़निया (३) खउसी

शांडिल्य गोत्र ( तिवारी,त्रिपाठी वंश) 

शांडिल्य ऋषि के बारह पुत्र बताये जाते हैं जो इन बाह गांवों से प्रभुत्व रखते हैं|

(१) सांडी (२) सोहगौरा (३) संरयाँ  (४) श्रीजन (५) धतूरा (६) भगराइच (७) बलूआ (८) हरदी (९) झूडीयाँ (१०) उनवलियाँ (११) लोनापार (१२) कटियारी, लोनापार में लोनाखार, कानापार, छपरा भी समाहित है  

इन्ही बारह गांवों से आज चारों तरफ इनका विकास हुआ है, यें सरयूपारीण ब्राह्मण हैं| इनका गोत्र श्री मुख शांडिल्य त्रि प्रवर है, श्री मुख शांडिल्य में घरानों का प्रचलन है जिसमे  राम घराना, कृष्ण घराना, नाथ घराना, मणी घराना है, इन चारों का उदय, सोहगौरा गोरखपुर से है जहाँ आज भी इन चारों का अस्तित्व कायम है| 

उप शांडिल्य ( तिवारी- त्रिपाठी, वंश)

इनके छ: गाँव बताये जाते हैं जी निम्नवत हैं|

(१) शीशवाँ (२) चौरीहाँ (३) चनरवटा (४) जोजिया (५) ढकरा (६) क़जरवटा

भार्गव गोत्र (तिवारी  या त्रिपाठी वंश)

भार्गव ऋषि के चार पुत्र बताये जाते हैं जिसमें  चार गांवों का उल्लेख मिलता है जो इस प्रकार है|

(१) सिंघनजोड़ी (२) सोताचक  (३) चेतियाँ  (४) मदनपुर

 भारद्वाज गोत्र (दुबे वंश)

भारद्वाज ऋषि के चार पुत्र बताये जाते हैं जिनकी उत्पत्ति इन चार गांवों से बताई जाती है|

(१) बड़गईयाँ (२) सरार (३) परहूँआ (४) गरयापार

कन्चनियाँ और लाठीयारी इन दो गांवों में दुबे घराना बताया जाता है जो वास्तव में गौतम मिश्र हैं लेकिन  इनके पिता क्रमश: उठातमनी और शंखमनी गौतम मिश्र थे परन्तु वासी (बस्ती) के राजा  बोधमल ने एक पोखरा खुदवाया जिसमे लट्ठा न चल पाया, राजा के कहने पर दोनों भाई मिल कर लट्ठे को चलाया जिसमे एक ने लट्ठे सोने वाला भाग पकड़ा तो दुसरें ने लाठी वाला भाग पकड़ा जिसमे कन्चनियाँ व लाठियारी का नाम पड़ा, दुबे की गददी होने से ये लोग दुबे कहलाने लगें| 

सरार के दुबे के वहां पांति का प्रचलन रहा है अतएव इनको तीन के समकक्ष माना जाता है|

सावरण गोत्र ( पाण्डेय वंश)

सावरण ऋषि के तीन पुत्र बताये जाते हैं इनके वहां भी पांति का प्रचलन रहा है जिन्हें तीन के समकक्ष माना जाता है जिनके तीन गाँव निम्न हैं| 

(१) इन्द्रपुर (२) दिलीपपुर (३) रकहट (चमरूपट्टी) 

सांकेत गोत्र (मलांव के पाण्डेय वंश)

सांकेत ऋषि के तीन पुत्र इन तीन गांवों से सम्बन्धित बताये जाते हैं|

(१) मलांव (२) नचइयाँ (३) चकसनियाँ

कश्यप गोत्र (त्रिफला के पाण्डेय वंश)

इन तीन गांवों से बताये जाते हैं|

(१) त्रिफला (२) मढ़रियाँ  (३) ढडमढीयाँ 

ओझा वंश 

इन तीन गांवों से बताये जाते हैं|

(१) करइली (२) खैरी (३) निपनियां 

चौबे -चतुर्वेदी, वंश (कश्यप गोत्र)

इनके लिए तीन गांवों का उल्लेख मिलता है|

(१) वंदनडीह (२) बलूआ (३) बेलउजां 

एक गाँव कुसहाँ का उल्लेख बताते है जो शायद उपाध्याय वंश का मालूम पड़ता है|

🌇ब्राह्मणों की वंशावली🌇
भविष्य पुराण के अनुसार ब्राह्मणों का इतिहास है की प्राचीन काल में महर्षि कश्यप के पुत्र कण्वय की आर्यावनी नाम की देव कन्या पत्नी हुई। ब्रम्हा की आज्ञा से 
दोनों कुरुक्षेत्र वासनी
सरस्वती नदी के तट 
पर गये और कण् व चतुर्वेदमय 
सूक्तों में सरस्वती देवी की स्तुति करने लगे
एक वर्ष बीत जाने पर वह देवी प्रसन्न हो वहां आयीं और ब्राम्हणो की समृद्धि के लिये उन्हें 
वरदान दिया ।
वर के प्रभाव कण्वय के आर्य बुद्धिवाले दस पुत्र हुए जिनका 
क्रमानुसार नाम था -
उपाध्याय,
दीक्षित,
पाठक,
शुक्ला,
मिश्रा,
अग्निहोत्री,
दुबे,
तिवारी,
पाण्डेय,
और
चतुर्वेदी ।
इन लोगो का जैसा नाम था वैसा ही गुण। इन लोगो ने नत मस्तक हो सरस्वती देवी को प्रसन्न किया। बारह वर्ष की अवस्था वाले उन लोगो को भक्तवत्सला शारदा देवी ने 
अपनी कन्याए प्रदान की।
वे क्रमशः
उपाध्यायी,
दीक्षिता,
पाठकी,
शुक्लिका,
मिश्राणी,
अग्निहोत्रिधी,
द्विवेदिनी,
तिवेदिनी
पाण्ड्यायनी,
और
चतुर्वेदिनी कहलायीं।
फिर उन कन्याआं के भी अपने-अपने पति से सोलह-सोलह पुत्र हुए हैं
वे सब गोत्रकार हुए जिनका नाम -
कष्यप,
भरद्वाज,
विश्वामित्र,
गौतम,
जमदग्रि,
वसिष्ठ,
वत्स,
गौतम,
पराशर,
गर्ग,
अत्रि,
भृगडत्र,
अंगिरा,
श्रंगी,
कात्याय,
और
याज्ञवल्क्य।
इन नामो से सोलह-सोलह पुत्र जाने जाते हैं।
मुख्य 10 प्रकार ब्राम्हणों ये हैं-
(1) तैलंगा,
(2) महार्राष्ट्रा,
(3) गुर्जर,
(4) द्रविड,
(5) कर्णटिका,
यह पांच "द्रविण" कहे जाते हैं, ये विन्ध्यांचल के दक्षिण में पाये जाते हैं|
तथा
विंध्यांचल के उत्तर में पाये जाने वाले या वास करने वाले ब्राम्हण
(1) सारस्वत,
(2) कान्यकुब्ज,
(3) गौड़,
(4) मैथिल,
(5) उत्कलये,
उत्तर के पंच गौड़ कहे जाते हैं।
वैसे ब्राम्हण अनेक हैं जिनका वर्णन आगे लिखा है।
ऐसी संख्या मुख्य 115 की है।
शाखा भेद अनेक हैं । इनके अलावा संकर जाति ब्राम्हण अनेक है ।
यहां मिली जुली उत्तर व दक्षिण के ब्राम्हणों की नामावली 115 की दे रहा हूं।
जो एक से दो और 2 से 5 और 5 से 10 और 10 से 84 भेद हुए हैं,
फिर उत्तर व दक्षिण के ब्राम्हण की संख्या शाखा भेद से 230 के
लगभग है | 
तथा और भी शाखा भेद हुए हैं, जो लगभग 300 के करीब ब्राम्हण भेदों की संख्या का लेखा पाया गया है।
उत्तर व दक्षिणी ब्राम्हणां के भेद इस प्रकार है
81 ब्राम्हाणां की 31 शाखा कुल 115 ब्राम्हण संख्या, मुख्य है -
(1) गौड़ ब्राम्हण,
(2)गुजरगौड़ ब्राम्हण (मारवाड,मालवा)
(3) श्री गौड़ ब्राम्हण,
(4) गंगापुत्र गौडत्र ब्राम्हण,
(5) हरियाणा गौड़ ब्राम्हण,
(6) वशिष्ठ गौड़ ब्राम्हण,
(7) शोरथ गौड ब्राम्हण,
(8) दालभ्य गौड़ ब्राम्हण,
(9) सुखसेन गौड़ ब्राम्हण,
(10) भटनागर गौड़ ब्राम्हण,
(11) सूरजध्वज गौड ब्राम्हण(षोभर),
(12) मथुरा के चौबे ब्राम्हण,
(13) वाल्मीकि ब्राम्हण,
(14) रायकवाल ब्राम्हण,
(15) गोमित्र ब्राम्हण,
(16) दायमा ब्राम्हण,
(17) सारस्वत ब्राम्हण,
(18) मैथल ब्राम्हण,
(19) कान्यकुब्ज ब्राम्हण,
(20) उत्कल ब्राम्हण,
(21) सरवरिया ब्राम्हण,
(22) पराशर ब्राम्हण,
(23) सनोडिया या सनाड्य,
(24)मित्र गौड़ ब्राम्हण,
(25) कपिल ब्राम्हण,
(26) तलाजिये ब्राम्हण,
(27) खेटुवे ब्राम्हण,
(28) नारदी ब्राम्हण,
(29) चन्द्रसर ब्राम्हण,
(30)वलादरे ब्राम्हण,
(31) गयावाल ब्राम्हण,
(32) ओडये ब्राम्हण,
(33) आभीर ब्राम्हण,
(34) पल्लीवास ब्राम्हण,
(35) लेटवास ब्राम्हण,
(36) सोमपुरा ब्राम्हण,
(37) काबोद सिद्धि ब्राम्हण,
(38) नदोर्या ब्राम्हण,
(39) भारती ब्राम्हण,
(40) पुश्करर्णी ब्राम्हण,
(41) गरुड़ गलिया ब्राम्हण,
(42) भार्गव ब्राम्हण,
(43) नार्मदीय ब्राम्हण,
(44) नन्दवाण ब्राम्हण,
(45) मैत्रयणी ब्राम्हण,
(46) अभिल्ल ब्राम्हण,
(47) मध्यान्दिनीय ब्राम्हण,
(48) टोलक ब्राम्हण,
(49) श्रीमाली ब्राम्हण,
(50) पोरवाल बनिये ब्राम्हण,
(51) श्रीमाली वैष्य ब्राम्हण 
(52) तांगड़ ब्राम्हण,
(53) सिंध ब्राम्हण,
(54) त्रिवेदी म्होड ब्राम्हण,
(55) इग्यर्शण ब्राम्हण,
(56) धनोजा म्होड ब्राम्हण,
(57) गौभुज ब्राम्हण,
(58) अट्टालजर ब्राम्हण,
(59) मधुकर ब्राम्हण,
(60) मंडलपुरवासी ब्राम्हण,
(61) खड़ायते ब्राम्हण,
(62) बाजरखेड़ा वाल ब्राम्हण,
(63) भीतरखेड़ा वाल ब्राम्हण,
(64) लाढवनिये ब्राम्हण,
(65) झारोला ब्राम्हण,
(66) अंतरदेवी ब्राम्हण,
(67) गालव ब्राम्हण,
(68) गिरनारे ब्राम्हण
सभी ब्राह्मण बंधुओ को मेरा नमस्कार बहुत दुर्लभ जानकारी है जरूर पढ़े। और समाज में शेयर करे हम क्या है
इस तरह ब्राह्मणों की उत्पत्ति और इतिहास के साथ इनका विस्तार अलग अलग राज्यो में हुआ और ये उस राज्य के ब्राह्मण कहलाये।
ब्राह्मण बिना धरती की कल्पना ही नहीं की जा सकती इसलिए ब्राह्मण होने पर गर्व करो और अपने कर्म और धर्म का पालन कर सनातन संस्कृति की रक्षा करें।

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नोट:आप सभी बंधुओं से अनुरोध है कि सभी ब्राह्मणों को भेजें और यथासम्भव अपनी वंशावली का प्रसार करने में सहयोग करें।
आप का तिवारी परिवार 
जय श्री राम 

मंगलवार, 7 नवंबर 2023

वाल्मीकि रामायण के कुछ अनसुने राहस

वाल्मीकि रामायण के अनसुने रहस्य –

#thread

1- राम और उनके भाइयों के जन्म से पहले, राजा दशरथ और उनकी पहली पत्नी कौशल्या की शांता नाम की एक बेटी थी। कौशल्या की बड़ी बहन वेर्शिनी और उनके पति राजा रोमपाद ने शांता को गोद ले लिया था। जिनका बाद में ऋषि ऋष्यश्रृंग से विवाह हुआ था। 

2- रामायण के प्रत्येक 1000 श्लोकों के बाद पहला अक्षर गायत्री मंत्र बनता है। यह मंत्र प्रतीकात्मक रूप से महाकाव्य रामायण का सार है। गायत्री मंत्र का उल्लेख सबसे पहले सबसे पुराने वेदों में से एक ऋग्वेद में मिलता है। मूल वाल्मिकी रामायण में 24,000 श्लोक हैं। 

3- जब राम मिथिला आये तो वहां कोई स्वयंवर नहीं था। वह विश्वामित्र ही थे, जिन्होंने मिथिला जाने से पहले राम से कहा था कि वह वहां रखा भगवान शिव का एक अमोघ धनुष दिखाएंगे। उस धनुष का नाम पिनाक था जिसका उपयोग भगवान राम ने सीता स्वयंवर में किया था।

4- मूल वाल्मिकी रामायण में लक्ष्मण रेखा का कोई उल्लेख नहीं है। जिस रेखा को पार नहीं किया जा सकता उसके रूपक के रूप में इस्तेमाल किया जाने वाला प्रसिद्ध शब्द वास्तव में सीता की रक्षा के लिए लक्ष्मण द्वारा अपने तीर से खींची गई एक सीमा है। लेकिन संत तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस में भी इस कथा का प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं है।

5- भगवान लक्ष्मण ने अपनी नींद का त्याग कर दिया, जिसके बाद उनकी पत्नी उर्मिला अपने पति की नींद की भरपाई के लिए 14 साल तक सोती रहीं। जब वे रावण को हराने के बाद अयोध्या लौटे, तो देवी निद्रा तुरंत लक्ष्मण के सामने प्रकट हुईं और जब वह सो गए, तो उर्मिला जाग गईं।

6- वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब राम 25 वर्ष के थे तब उन्हें वनवास मिला। वह अयोध्या लौटे और 39 वर्ष की आयु में उनका राज्याभिषेक किया गया। राज्याभिषेक के बाद 30 वर्ष और 6 महीने तक शासन करने के बाद, जब वह लगभग 70 वर्ष के थे, तब राम ने राज्य छोड़ दिया।

7- बाल्मिकी रामायण में सीता को बचाने के प्रयास का श्रेय जटायु को नहीं, बल्कि उनके पिता अरुण को दिया गया है।

8- बाल्मिकी जी ने बताया की धर्म के अनुसार जीवन जीने वाले महाराजा के लिए एक दिन एक वर्ष के बराबर होता है। वर्ष को 360 दिनों और 30 दिनों के 12 महीनों से मिलकर बनाने पर, काव्यात्मक रूप में 11,000 वर्ष, हमें वास्तविक वर्षों की संख्या के रूप में 30 वर्ष और 6 महीने मिलते हैं जब राम ने अयोध्या पर शासन किया था।

9- सुपर्णखा ने अपने पति की हत्या के लिए रावण को मृत्यु का श्राप दिया था। सुपर्णखा का पति राक्षस राजा कालकेय का सेनापति थाद्य जिसका वध रावण ने अपने विश्व विजय अभियान के दौरान कर दिया था ।

10- रावण के पास पुष्पक विमान और भी कई विमान थे जिसमे उपयोग किया एक अन्य प्रसिद्ध विमान दांडू मोनारा है। स्थानीय सिंहली भाषा में, मोनारा का अर्थ है मयूरा, मोर और डंडू मोनारा का अर्थ है "वह जो मोर की तरह उड़ सकता है"।

11-  पुल को बनाने में वास्तुकार नील और नाल की देखरेख में पांच दिन में 10 मिलियन वानरों ने निर्माण कराया। जब पुल का निर्माण किया गया था तब इसका आयाम 100  योजन, लंबाई में और 10  योजन  सांस में था, जिससे इसका अनुपात 10:1 था।
भारत में धनुषकोडी से श्रीलंका में तलाईमन्नार तक का पुल, जैसा कि वर्तमान समय में मापा गया है, लंबाई में लगभग 35 किमी और चौड़ाई 3.5 किमी है, अनुपात 10:1 है।

12- बाल्मिकी के अनुसार कौशल्या ने कहा था, "यदि तुम्हारे पिता ने ही तुम्हें निर्वासित किया है, तो मैं उन्हें अस्वीकार कर सकती हूं।"
क्योंकि पुराने दिनों में, रानियों को राजा के आदेश को पलटने का अधिकार था। और ये भी कहा “लेकिन अगर कैकेयी ने ही आदेश दिया है, तो तुम्हें जाना ही होगा। निश्चित रूप से, वह आपके सर्वोत्तम हित को ध्यान में रखेगी।''

13-  राम को ब्राह्मण वधं प्रयश्चितम् , अर्थात ब्राह्मण रावण की हत्या का प्रायश्चित करना पड़ा। इसलिए अपने राज्याभिषेक के बाद, वह एक विद्वान रावण को मारने का प्रायश्चित करने के लिए अपने भाई के साथ देवप्रयाग गए। देवप्रयाग भारत के उत्तरी भाग उत्तरांचल में है।

14- मंदोदरी रावण की पत्नी थी। वह महान वास्तुकार, गणितज्ञ, खगोलशास्त्री और कुशल इंजीनियर प्रसिद्ध मयासुर की बेटी थीं। मंदोदरी को भारत की प्रतिष्ठित पंचकन्याओं में से एक माना जाता है, भारतीय परंपरा में पांच महिलाओं को   उनके आदर्श जीवन के लिए पंचकन्या की उपाधि दी गई है। वे हैं अहल्या, सीता, मंदोदरी, द्रौपदी और तारा।

15- महर्षि वाल्मिकी ने महाग्रंथ रामायण की रचना उत्तर प्रदेश के बिठूर कस्बे में गंगा जी के किनारे स्थित अपने आश्रम में की थी। ऐसा माना जाता है कि, यह वही स्थान है जहां माता सीता ने समाधि ली थी और धरती में समा गयी थीं।


जय श्री राम
आप का तिवारी परिवार 

सोमवार, 16 अक्टूबर 2023

भगवान विष्णु किस तरह से अपने भक्तों

हिंदू धर्म में, जय और विजय विष्णु के निवास के दो द्वारपाल (द्वारपाल) हैं, जिन्हें वैकुंठ लोक के नाम से जाना जाता है। चार कुमारों के श्राप के कारण, उन्हें नश्वर के रूप में कई जन्म लेने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिन्हें बाद में भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों द्वारा मार दिया गया।

विष्णु कहते हैं कि कुमारों का श्राप वापस नहीं लिया जा सकता। इसके बजाय, वह जय और विजय को दो विकल्प देते हैं।
 पहला विकल्प है पृथ्वी पर सात जन्म विष्णु के भक्त के रूप में लेना, जबकि दूसरा है तीन जन्म उनके कट्टर शत्रु के रूप में लेना।

जय और विजय के बारे में 

पुराणों से जुड़ी एक रोचक कथा है। जय और विजय नाम के दो पात्र थे, जो सतयुग में वैकुंठ में भगवान विष्णु के द्वारपाल के रूप में काम करते थे। दोनों भाई अपने स्वामी के प्रति वफादार थे और वे अपने कर्तव्यों को कुशलतापूर्वक निष्पादित करते थे। हालाँकि, कुछ समय बाद, जय और विजय को भगवान विष्णु के सेवक होने पर गर्व होने लगा, जो पृथ्वी पर जीवन की रक्षा करते हैं।

एक दिन, चार कुमार, जिन्हें सनकादिक ऋषि (भगवान ब्रह्मा के पुत्र) के रूप में भी जाना जाता है, जिनके नाम सनक कुमार, सनातन कुमार, सनन्दन कुमार और सनत कुमार थे, अपने प्रिय विष्णु के दर्शन लेने की इच्छा से वैकुंठ गए। हालाँकि, उन्हें जय और विजय ने प्रवेश द्वार पर रोक दिया। बार बार अनुरोध करने के बावजूद, जय और विजय ने चारों भाइयों को अनुमति देने से इनकार कर दिया। उन्होंने भगवान विष्णु को चार ब्रह्मचारियों के आगमन के बारे में सूचित नहीं करने का फैसला किया और इसके बजाय उन्हें वापस लौटने के लिए कहा।
 जय और विजय इतने अहंकारी हो गए थे कि उन्होंने चार विद्वान संतों के प्रति शिष्टाचार नहीं दिखाया। और बार बार अपील करने के बाद भी उन्होंने अनसुना कर दिया। इसके बाद, उन्होंने कुमारों के क्रोध को आमंत्रित किया, जिन्होंने उन्हें धार्मिकता की भावना पर अहंकार हावी होने देने के लिए शाप दिया।

जय और विजय की भगवान विष्णु से प्रार्थना:

अपनी गलती का एहसास होने के बाद, जय और विजय ने भगवान विष्णु से उन्हें श्राप से बचाने की अपील की। लेकिन भगवान विष्णु ने उन्हें अहंकार करने का खामियाजा भुगतने को कहा। और ऐसा कहकर, भगवान विष्णु ने बताया कि क्यों किसी को अपने कर्मों पर नियंत्रण रखना चाहिए।
जिन चारों कुमारों ने जय और विजय को श्राप दिया था, उन्होंने अपना निर्णय वापस नहीं लिया। हालाँकि, उन्होंने समझाया कि श्राप का दोनों भाइयों के लिए क्या मतलब होगा। वास्तव में, यह जय और विजय के लिए भगवान विष्णु के अलावा किसी और द्वारा प्रदत्त मोक्ष (मुक्ति) प्राप्त करने का अवसर था।

उन्होंने खुलासा किया कि जय विजय सतयुग में हिरण्यकशिपु, हिरण्याक्ष के रूप में, त्रेता युग में रावण, कुंभकर्ण के रूप में और द्वापर युग में कंस, शिशुपाल के रूप में पैदा होंगी।

दिलचस्प बात यह है कि वे जानते थे कि भगवान विष्णु क्रमशः सतयुग, त्रेता युग और द्वापर युग में वराह, नरसिम्हा, राम और कृष्ण के रूप में जन्म लेंगे।

हिरण्याक्ष (विजय), जिसने पृथ्वी को समुद्र के नीचे छिपा दिया था, भगवान विष्णु के वराह अवतार द्वारा समाप्त हो गया, जबकि हिरण्यकश्यप का अत्याचार नरसिम्हा द्वारा समाप्त किया गया। रावण और कुंभकर्ण को अधर्म का पालन करने के लिए श्री राम द्वारा मार दिया गया, जबकि कंस और शिशुपाल को श्री कृष्ण द्वारा दंडित किया गया।

आप का तिवारी परिवार 

जय श्री राम 

सोमवार, 6 जून 2022

गोस्वामी तुलसीदास जी बाबर के बारे मे कुछ इस प्रकार लिखा है

प्रश्न :- अगर श्री राम का मंदिर तोड़ा गया तो इसका जिक्र तुलसीदास ने क्यो नही किया..??
प्रश्न वाजिब था..
खैर तलाश, रिसर्च प्रारम्भ हुआ और मिल भी गया....

पढ़ें तुलसीदास जी ने भी बाबरी मस्जिद का उल्लेख किया है!

सच ये है कि कई लोग तुलसीदास जी की सभी रचनाओं से अनभिज्ञ है और अज्ञानतावश ऐसी बातें करते हैं l 

वस्तुतः  रामचरित मानस के अलावा तुलसीदास जी ने कई अन्य ग्रंथो की भी रचना की है . तुलसीदास जी ने *तुलसी शतक* में इस घंटना का विस्तार से विवरण भी दिया है .

हमारे वामपंथी विचारको तथा इतिहासकारो ने ये भ्रम की स्थति उत्पन्न की, कि रामचरितमानस में ऐसी कोई घटना का वर्णन नही है . 

 *"तुलसी दोहा शतक "* का अर्थ इलाहाबाद हाई कोर्ट में प्रस्तुत किया है | 
 प्रत्येक दोहे का अर्थ उनके नीचे दिया गया है , ध्यान से पढ़ें |

*(1) मन्त्र उपनिषद ब्राह्मनहुँ बहु पुरान इतिहास ।*
*जवन जराये रोष भरि करि तुलसी परिहास ॥*

श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि क्रोध से ओतप्रोत यवनों ने बहुत सारे मन्त्र (संहिता), उपनिषद, ब्राह्मणग्रन्थों (जो वेद के अंग होते हैं) तथा पुराण और इतिहास सम्बन्धी ग्रन्थों का उपहास करते हुये उन्हें जला दिया ।

*(2) सिखा सूत्र से हीन करि बल ते हिन्दू लोग ।*
*भमरि भगाये देश ते तुलसी कठिन कुजोग ॥*

श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि ताकत से हिंदुओं की शिखा (चोटी) और यग्योपवीत से रहित करके उनको गृहविहीन कर अपने पैतृक देश से भगा दिया ।

*(3) बाबर बर्बर आइके कर लीन्हे करवाल ।*
*हने पचारि पचारि  जन तुलसी काल कराल ॥*

श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि हाँथ में तलवार लिये हुये बर्बर बाबर आया और लोगों को ललकार ललकार कर हत्या की । यह समय अत्यन्त भीषण था ।

*(4) सम्बत सर वसु बान नभ ग्रीष्म ऋतु अनुमानि ।*
*तुलसी अवधहिं जड़ जवन अनरथ किये अनखानि ॥*

(इस दोहा में ज्योतिषीय काल गणना में अंक दायें से बाईं ओर लिखे जाते थे, सर (शर) = 5, वसु = 8, बान (बाण) = 5, नभ = 1 अर्थात विक्रम सम्वत 1585 और विक्रम सम्वत में से 57 वर्ष घटा देने से ईस्वी सन 1528 आता है ।)
श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि सम्वत् 1585 विक्रमी (सन 1528 ई) अनुमानतः ग्रीष्मकाल में जड़ यवनों अवध में वर्णनातीत अनर्थ किये । (वर्णन न करने योग्य) ।

*(5) राम जनम महि मंदरहिं, तोरि मसीत बनाय ।*
*जवहिं बहुत हिन्दू हते, तुलसी कीन्ही हाय ॥*

जन्मभूमि का मन्दिर नष्ट करके, उन्होंने एक मस्जिद बनाई । साथ ही तेज गति उन्होंने बहुत से हिंदुओं की हत्या की । इसे सोचकर तुलसीदास शोकाकुल हुये ।

*(6) दल्यो मीरबाकी अवध मन्दिर रामसमाज ।*
*तुलसी रोवत ह्रदय हति त्राहि त्राहि रघुराज॥*

मीर बाकी ने मन्दिर तथा रामसमाज (राम दरबार की मूर्तियों) को नष्ट किया । राम से रक्षा की याचना करते हुए विदीर्ण ह्रदय तुलसी रोये ।

*(7) राम जनम मन्दिर जहाँ तसत अवध के बीच ।*
*तुलसी रची मसीत तहँ मीरबाकी खाल नीच ॥*

तुलसीदास जी कहते हैं कि अयोध्या के मध्य जहाँ राममन्दिर था वहाँ नीच मीर बाकी ने मस्जिद बनाई ।

*(8)रामायन घरि घट जँह, श्रुति पुरान उपखान ।*
*तुलसी जवन अजान तँह, कइयों कुरान अज़ान ॥*

श्री तुलसीदास जी कहते है कि जहाँ रामायण, श्रुति, वेद, पुराण से सम्बंधित प्रवचन होते थे, घण्टे, घड़ियाल बजते थे, वहाँ अज्ञानी यवनों की कुरआन और अज़ान होने लगे।

 गोस्वामी तुलसीदास जी की इस रचना में जन्मभूमि विध्वंस का विस्तृत रूप से वर्णन किया किया 
है!

सभी से विनम्र निवेदन है कि सभी देशवासियों को  अपने  सभ्यता के  स्वर्णिम युग के गौरवशाली  अतीत के  बारे में बताइये i

🇮🇳🇮🇳।      आप का तिवारी परीवार 
जय श्री राम
जय श्री राम 

रविवार, 22 मई 2022

कर्मकांड के कुछ इस प्रकार फल है

सूतक का वैज्ञानिक आधार
सूतक काल के बारे में तो सभी जानते होंगे पर यह नहीं जानते होंगे कि इस दौरान की गई क्रियाओं का वैज्ञानिक आधार क्या है। सूतक दो प्रकार का होता है। १-किसी की मृत्यु हो जाने पर परिवार को लगने वाला सूतक
२- संतानोत्पत्ति के बाद मां को लगने वाला सआइए जानते हैं पहले सूतक के बारे में। किसी की मृत्यु हो जाने पर उसके शव को दक्षिण दिशा की ओर पैर रखकर लिटाया जाता है। देखा तो सबने होगा पर नहीं जानते होंगे कि ऐसा क्यों होता है। ऐसा इसलिए किया जाता है कि यमराज का स्थान दक्षिणी दिशा में होता है। एक और कारण है।
लगता है। साथ-साथ परिवार को भी लग जाता है। अंतिम संस्कार के बाद वापस लौटने पर साथ गये सभी लोगों को नीम की पत्तियां छिलाई जाती हैं।इसका कारण भी वही है। श्मशान में उड़ते वायरस का असर न पड़े इसलिए सबको नीम की पत्तियां या लाल मिर्च दांतों से कुपटने के लिए दिया जाता है
लगता है। साथ-साथ परिवार को भी लग जाता है। अंतिम संस्कार के बाद वापस लौटने पर साथ गये सभी लोगों को नीम की पत्तियां छिलाई जाती हैं।इसका कारण भी वही है। श्मशान में उड़ते वायरस का असर न पड़े इसलिए सबको नीम की पत्तियां या लाल मिर्च दांतों से कुपटने के लिए दिया जाता है
: इसके बाद शुरू होता है सूतक जिसे आम बोलचाल में शुद्धक कहते हैं। इसमें अग्नि संस्कार करने वाले जिसे दगदिहा कहते हैं को दस दिनों तक बाहर मडहे या बैठका में संन्यासी की तरह रहना पड़ता है।उसका बिस्तर तख्त बर्तन अलग कर दिया जाता है।दिन भर फलाहार रहने के बाद शाम को सूर्यास्त
 कर की गई पूजा अर्चना देवी देवताओं को प्राप्त नहीं होती।
शहरों में समयाभाव और स्थानाभाव के कारण यह संभव नहीं होता पर गांवों में यह क्रिया पूरे विधि-विधान से होती है। महिलाओं को इस सूतक काल में हल्दी मिश्रित दूध हल्दी सोंठ मिश्रित गुड़ खिलाया जाता है। सूखा मेवा आद अन्य पौष्टिक आहार दिया जाता है।
आप का तिवारी  परीवार 
जय राम जी की
जय श्री राम
धन्यवाद मित्रों

शनिवार, 21 मई 2022

हानि लाभ जीवन मरण यश अपयश विधि हाथ

.           प्राथमिकता मुख्य उत्तरदायित्व को दें!
जंगल में एक गर्भवती हिरनी बच्चे को जन्म देने को थी वो एकांत जगह की तलाश में घूम रही थी कि उसे नदी किनारे ऊँची और घनी घास दिखी।उसे वो उपयुक्त स्थान लगा शिशु को जन्म देने के लिये वहां पहुँचते ही उसे प्रसव पीडा शुरू हो गयी।
उसी समय आसमान में घनघोर बादल वर्षा को आतुर हो उठे और बिजली कडकने लगी। 

उसने बायें देखा तो एक शिकारी तीर का निशाना उस की तरफ साध रहा था। *घबराकर वह दाहिने मुड़ी तो वहां एक भूखा शेर, झपटने को तैयार बैठा था। सामने सूखी घास आग पकड चुकी थी और पीछे मुड़ी तो नदी में जल बहुत था।
.           प्राथमिकता मुख्य उत्तरदायित्व को दें!

जंगल में एक गर्भवती हिरनी बच्चे को जन्म देने को थी वो एकांत जगह की तलाश में घूम रही थी कि उसे नदी किनारे ऊँची और घनी घास दिखी।उसे वो उपयुक्त स्थान लगा शिशु को जन्म देने के लिये वहां पहुँचते ही उसे प्रसव पीडा शुरू हो गयी।
उसी समय आसमान में घनघोर बादल वर्षा को आतुर हो उठे और बिजली कडकने लगी। 

उसने बायें देखा तो एक शिकारी तीर का निशाना उस की तरफ साध रहा था। *घबराकर वह दाहिने मुड़ी तो वहां एक भूखा शेर, झपटने को तैयार बैठा था। सामने सूखी घास आग पकड चुकी थी और पीछे मुड़ी तो नदी में जल बहुत था।

मादा हिरनी क्या करती? वह प्रसव पीडा से व्याकुल थी। अब क्या होगा? क्या हिरनी जीवित बचेगी? क्या वो अपने शावक को जन्म दे पायेगी? क्या शावक जीवित रहेगा? 

क्या जंगल की आग सब कुछ जला देगी? क्या मादा हिरनी शिकारी के तीर से बच पायेगी? क्या मादा हिरनी भूखे शेर का भोजन बनेगी?

वो एक तरफ आग से घिरी है और पीछे नदी है। क्या करेगी वो?

हिरनी अपने आप को शून्य में छोड़,अपने प्राथमिक उत्तरदायित्व अपने बच्चे को जन्म देने में लग गयी।
 
कुदरत का करिश्मा देखिये बिजली चमकी और तीर छोडते हुए , शिकारी की आँखे चौंधिया गयी उसका तीर हिरनी के पास से गुजरते शेर की आँख में जा लगा, शेर दहाडता हुआ इधर उधर भागने लगा और शिकारी शेर को घायल ज़ानकर भाग गया घनघोर बारिश शुरू हो गयी और जंगल की आग बुझ गयी हिरनी ने शावक को जन्म दिया।

हमारे जीवन में भी कभी कभी कुछ क्षण ऐसे आते है, जब हम चारो तरफ से समस्याओं से घिरे होते हैं और कोई निर्णय नहीं ले पाते तब सब कुछ नियति के हाथों सौंपकर अपने  उत्तरदायित्व व प्राथमिकता पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। अन्तत: यश- अपयश, हार-जीत, जीवन-मृत्यु का अन्तिम निर्णय ईश्वर करता है। हमें उस पर विश्वास कर उसके निर्णय का सम्मान करना चाहिए।
..........
जय श्री कृष्णा 🙏🙏
एल
मादा हिरनी क्या करती? वह प्रसव पीडा से व्याकुल थी। अब क्या होगा? क्या हिरनी जीवित बचेगी? क्या वो अपने शावक को जन्म दे पायेगी? क्या शावक जीवित रहेगा? 

क्या जंगल की आग सब कुछ जला देगी? क्या मादा हिरनी शिकारी के तीर से बच पायेगी? क्या मादा हिरनी भूखे शेर का भोजन बनेगी?

वो एक तरफ आग से घिरी है और पीछे नदी है। क्या करेगी वो?

हिरनी अपने आप को शून्य में छोड़,अपने प्राथमिक उत्तरदायित्व अपने बच्चे को जन्म देने में लग गयी।
 
कुदरत का करिश्मा देखिये बिजली चमकी और तीर छोडते हुए , शिकारी की आँखे चौंधिया गयी उसका तीर हिरनी के पास से गुजरते शेर की आँख में जा लगा, शेर दहाडता हुआ इधर उधर भागने लगा और शिकारी शेर को घायल ज़ानकर भाग गया घनघोर बारिश शुरू हो गयी और जंगल की आग बुझ गयी हिरनी ने शावक को जन्म दिया।

हमारे जीवन में भी कभी कभी कुछ क्षण ऐसे आते है, जब हम चारो तरफ से समस्याओं से घिरे होते हैं और कोई निर्णय नहीं ले पाते तब सब कुछ नियति के हाथों सौंपकर अपने  उत्तरदायित्व व प्राथमिकता पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। अन्तत: यश- अपयश, हार-जीत, जीवन-मृत्यु का अन्तिम निर्णय ईश्वर करता है। हमें उस पर विश्वास कर उसके निर्णय का सम्मान करना चाहिए।
   आप का  तिवारी  परीवार
..........
जय श्री कृष्णा 🙏🙏

सोमवार, 21 फ़रवरी 2022

हीऩ्दू के साथ अनाचार और दुर बेवहार इसलीये किया जाता है कि ये दीसाहीन है

*हिंदु कौम एक ऐसी ही सेना है जिसका कोई लक्ष्य नहीं, कोई मंजिल नहीं, शत्रु की पहचान नहीं, अपना कोई सेनापति नहीं !*

*दुश्मन को न पहचानने वाली, नेतृत्वहीन विराट सेना भी अंततः युद्ध हार जाती है ...*

*हिंदुओं से ज्यादा राजनैतिक लक्ष्यहीन और दिशाहीन कौम कोई नहीं, क्योंकि हिंदुओं के नेता तो बहुत हैं पर उनके मन में हिंदुओं के साम्राज्य जैसा कोई लक्ष्य नहीं, कोई महत्वाकांक्षा नहीं; इसलिए हिंदु नेताओं को सेकुलरिज्म की चादर ओढ़कर हिंदुओं के रक्त की प्यासी कौम से भाईचारा निभाने में भी कोई लज्जा नहीं आती!*

*सत्ता का जो तंत्र अंग्रेज स्थापित कर गए, मात्र वे उसे ढोना चाहते हैं, उसपर बैठकर उसे भोगना चाहते हैं, यही हिंदु नेताओं की महत्वाकांक्षा है!*

*जबकि कम्युनिस्टों, मुसलमानों और ईसाईयों का स्पष्ट राजनैतिक लक्ष्य है। कम्युनिस्ट साम्यवादी शासन वाला भारत चाहते हैं, मुसलमान शरीयत कानून वाला इस्लामिक भारत चाहते हैं और ईसाई बाइबिल वाला रोमानियाई भारत चाहते हैं, पर हिंदुओं के मन में ऐसा कोई लक्ष्य नहीं है।*
उनके पास चीन, अरब और रोम का मॉडल है पर हिंदुओं के पास ऐसा कोई मॉडल नहीं ।

*हिंदुओं से राजनैतिक लक्ष्य की बात करो,  महंगाई, बेरोजगारी और गरीबी से मुक्ति से आगे उनकी कोई सोच नहीं होती!*
*जबकि महंगाई, बेरोजगारी और गरीबी जैसी बीमारियां इसी राजनैतिक लक्ष्यहीनता के कारण हैं! जिस दिन हिंदुमन स्वराज, हिंदु साम्राज्य और अखण्ड भारत बनाने की महत्वाकांक्षा से भर जाएगा उस दिन भारत महगांई, बेरोजगारी और गरीबी जैसी बीमारियों से भी स्वतः मुक्त होने लगेगा!*

*हिंदुओं की राजनीतिक दिशाहीनता का इतिहास सदियों पुराना हो चला है। जिन्ना 'डायरेक्ट एक्शन डे' की घोषणा करता है परंतु हिन्दू उसके प्रति भी मूकदर्शक रहता है जबकि वो जानता है कि दूसरा पक्ष कभी भी कार्यवाही करके हमारा कत्लेआम कर सकता है!*
*बर्मा, अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, तिब्बत, श्रीलंका आदि को भारत से तोड़कर अलग किया जाता रहा परंतु हिंदू फिर भी मूकदर्शक बना रहा।  1947 में भारत का 31 प्रतिशत हिस्सा काटकर मुसलमानों को दे दिया जाता है, परंतु हिंदू फिर भी मूकदर्शक रहता है!  ....और पाकिस्तान देने के बाद भी मुसलमानों को भारत में बसा लेता है!*

*1947 में रोके गए मुसलमान आज फिर भारत विभाजन की मांग कर रहे हैं पर हिंदू मौन है!*
*भारत में लाखों एकड़ भूमि वक्फ बोर्डों के नाम कर दी जाती है परंतु हिंदू फिर भी मूकदर्शक रहता है!*

*हिंदू अपने अयोध्या, काशी, मथुरा जैसे तीर्थ स्थलों के उत्थान का कार्य नहीं कर पाता, फिर भी हिन्दू मूकदर्शक रहता है!*
*पूरा भारत हिंदुओ के हाथों से जा रहा है परंतु हिन्दू आज तक ये निर्धारित न सके कि हमारा लक्ष्य क्या होना चाहिए!*
*हिंदुओं का घर उजड़ रहा है पर हिन्दू चैन से सो रहे हैं।*

*मिश्रित आबादी वाले क्षेत्र में जाइये और बात कीजिये, आप पायेगें कि हर साल हिंदू ही अपने मकान-दुकान बेचकर निकल रहे हैं!*
*और ये भारत के हर राज्य, हर शहर - कस्बे में हो रहा है।*

भारत की डेमोग्राफी तेजी से बदल रही है, भारत के अंदर सैकड़ों पाकिस्तान जन्म ले चुके हैं।

*भारत हिंदुराष्ट्र घोषित होगा तो सनातन संस्कृति के पोषण के लिए कानून बन सकेंगे।*
*हिंदुराष्ट्र भारत में हिंदुओं की संपत्ति अन्य कोई मजहब का व्यक्ति न खरीद सके, ऐसा कानून बना सकते हैं।*
*हिंदुराष्ट्र भारत में हिंदुओं का धर्मांतरण नहीं किया जा सके ऐसा कानून बनाया जा सकता है।*
*हिंदुराष्ट्र भारत में अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर धर्म, संस्कृति और अपने पूर्वजों को कोई गाली नहीं दे सकेगा, ऐसा कानून बना सकते हैं।*
*हिंदू राष्ट्र भारत में समस्त नौकरियों में प्रथम वरीयता हिंदुओं को दी जायेगी*

 *सेकुलर भारत अपंग और असहाय है, वह अपनी संस्कृति और मूल प्रजा की रक्षा के लिए कोई कदम नहीं उठा सकता, चाहे सत्ता पर कोई भी क्यों ना बैठा हो ।*

*अंग्रेजों द्वारा थोपे गए संविधान और शासन तंत्र को इसी प्रकार हम ढोते रहेंगे, तो एक दिन वह आएगा कि भारत के हर संसाधन पर और सत्ता पर मुसलमानों का शासन होगा और जिस दिन वहां सत्ता के शीर्ष पर कोई मुसलमान पहुंचेगा, उस दिन संविधान का पालन नहीं होगा बल्कि शरिया लागू कर भारत इस्लामिक राष्ट्र घोषित हो जाएगा!*
*तब तुम्हें वही मिलेगा जो मुसलमानों के 800 साल के शासन में काफिरों को मिलता रहा है.., वही मिलेगा जो ईरान में पारसियों को मिला, सीरिया में  यजीदियों को मिला...!*

*हिंदू नेता भारत को हिंदुराष्ट्र बनाने में हिचकते हैं, उसकी बात तक करने से डरते हैं, उस पर चर्चा परिचर्चा करने से उनके हाथों में कंपन शुरू हो जाता है! परंतु याद रखना, जिस दिन मुसलमान सत्ता के शीर्ष पर होगा उस दिन इस्लामिक राष्ट्र घोषित करने में उन्हें तनिक भी लज्जा, हिचक और देर नहीं होगी!*  
*इस्लामिक भारत में जो रोड़ा बनेगा उसे पारसियों, यजीदियों, सिंध और कश्मीरी हिंदुओं की तरह काट दिया जाएगा।*
*सिंध व कश्मीर में हिन्दुओं के साथ क्या हुआ, यह भी ध्यान में रखना चाहिए।*
 
👍. आप तिवारी परीवार
जय श्री राम 

शुक्रवार, 26 नवंबर 2021

आज के और पहले कुछ रस्मे रिवाज जो फर्क है आप खुद ही अनुभव करें खुद ही सोचे पहले ठीक था या अब ठीक है

*#गांव #के #बियाह*

पहले गाँव मे न टेंट हाऊस थे और न कैटरिंग।
थी तो बस सामाजिकता।
गांव में जब कोई शादी ब्याह होते तो घर घर से चारपाई आ जाती थी,
हर घर से थरिया, लोटा, कलछुल, कराही इकट्ठा हो जाता था और गाँव की ही महिलाएं एकत्र हो कर खाना बना देती थीं।
औरते ही मिलकर दुलहिन तैयार कर देती थीं और हर रसम का गीत गारी वगैरह भी खुद ही गा डालती थी।
तब DJ अनिल-DJ सुनील जैसी चीज नही होती थी और न ही कोई आरकेस्ट्रा वाले फूहड़ गाने।
गांव के सभी चौधरी टाइप के लोग पूरे दिन काम करने के लिए इकट्ठे रहते थे।
हंसी ठिठोली चलती रहती और समारोह का कामकाज भी।
शादी ब्याह मे गांव के लोग बारातियों के खाने से पहले खाना नहीं खाते थे क्योंकि यह घरातियों की इज्ज़त का सवाल होता था।
गांव की महिलाएं गीत गाती जाती और अपना काम करती रहती।
सच कहा उस समय गांव मे सामाजिकता के साथ समरसता होती थी।
खाना परसने के लिए गाँव के लौंडों का गैंग ontime इज्जत सम्हाल लेते थे।
कोई बड़े घर की शादी होती तो टेप बजा देते जिसमे एक कॉमन गाना बजता था-मैं सेहरा बांधके आऊंगा मेरा वादा है और दूल्हे राजा भी उस दिन खुद को किसी युवराज से कम न समझते। 
दूल्हे के आसपास नाऊ हमेशा रहता, टैम टैम पर बार झारते रहता था कंघी से और टेम टेम पर काजर-पउडर भी पोत देता था ताकि दुलहा सुन्नर लगे।
फिर दुवरा का चार होता फिर शुरू होती पण्डित जी की महाभारत जो रातभर चलती।लड़कियां जूता चुराती और 101 में मान जाती।
फिर कोहबर होता, ये वो रसम है जिसमे दुलहा दुलहिन को अकेले में दुइ मिनट बतियाने के लिए दिया जाता लेकिन इत्ते कम टेम मा कोई क्या खाक बात कर पाता।
सबेरे खिचड़ी में जमके गारी गाई जाती और यही वो रसम है जिसमे दूल्हे राजा जेम्स बांड बन जाते कि ना, हम नही खाएंगे खिचड़ी। फिर उनको मनाने कन्यापक्ष के सब जगलर टाइप के लोग आते।
अक्सर दुलहा की सेटिंग अपने चाचा या दादा से पहले ही सेट रहती थी और उसी अनुसार आधा घंटा कि पौन घंटा रिसियाने का क्रम चलता और उसी से दूल्हे के छोटे भाई सहबाला की भी भौकाल टाइट रहती लगे हाथ वो भी कुछ न कुछ और लहा लेता...
फिर एक जय घोष के साथ खिचड़ी के गोले से एक चावल का कण दूल्हे के होठों तक पहुंच जाता और एक विजयी मुस्कान के साथ वर और वधू पक्ष इसका आनंद लेते...
उसके बाद अचर धरउवा जिसमे दूल्हे का साक्षात्कार वधू पक्ष की महिलाओं से करवाया जाता और उस दौरान उसे विभिन्न उपहार प्राप्त होते जो नगद और श्रृंगार की वस्तुओं के रूप में होते.. इस प्रकिया में कुछ अनुभवी महिलाओं द्वारा काजल और पाउडर लगे दूल्हे का कौशल परिक्षण भी किया जाता और उसकी समीक्षा परिचर्चा विवाह बाद आहूत होती थी...
फिर गिने चुने बुजुर्गों द्वारा माड़ौ (विवाह के कर्मकांड हेतु निर्मित अस्थायी छप्पर) हिलाने की प्रक्रिया होती वहां हम लोगों के बचपने का सबसे महत्वपूर्ण आनंद उसमें लगे लकड़ी के शुग्गों ( तोता) को उखाड़ कर प्राप्त होता था और विदाई के समय नगद नारायण कड़ी कड़ी दो रूपये की नोट जो कहीं पांच रूपये तक होती थी....
वो स्वार्गिक अनुभूति होती कि कह नहीं सकते हालांकि विवाह में प्राप्त नगद नारायण माता जी द्वारा आठ आने से बदल दिया जाता था...
आज की पीढ़ी उस वास्तविक आनंद से वंचित हो चुकी है जो आनंद विवाह का हम लोगों ने प्राप्त किया 
आप का तिवारी परिवार
जय  श्री राम

शनिवार, 26 जून 2021

बुद्धि 😅😅😅😅 विक्रय 😅😅😅 😅 केंद्र

🍄🍄🍄🍄🍄🍄🍄🍄🍄🍄🍄

            *बुद्धि विक्रय केंद्र*

कुम्भ मेले में एक स्टाल लगा था जिस पर लिखा था ,  बुद्धि विक्रय केंद्र "  !

लोगो की भीड उस स्टाल पर लगी थी !

मै भी पहुंचा तो देखा कि उस स्टाल पर 
अलग अलग शीशे के जार में कुछ रखा
हुआ था !

एक जार पर लिखा था-
 ब्राह्मण की बुद्धि- 100 रुपये किलो

दूसरे जार पर लिखा था - 
गुर्जरों  की बुद्धि- 1000 रुपये किलो

तीसरे जार पर लिखा था- 
 दलितों की बुद्धि- 2000 रुपये किलो

चौथे जार पर लिखा था- 
 मुस्लिम की बुद्धि- 50000 रुपये किलो

मैं हैरान कि इस दुष्ट ने ब्राह्मण  की बुद्धि की इतनी कम कीमत क्यों लगाई? 

गुस्सा भी आया कि इसकी इतनी मजाल, 
अभी मजा चखाता हूँ।

गुस्से से लाल मै भीड को चीरते हुआ..
दुकानदार के पास पहुंचा और 
उससे पूछा कि तेरी हिम्मत कैसे हुयी जो ब्राह्मण  की बुद्धि इतनी सस्ती बेचने की ?

उसने मेरी तरफ देखा और मुस्कराया, 
हुजूर बाजार के नियमानुसार...

जो चीज ज्यादा उत्पादित होती है, 
उसका रेट गिर जाता है !

आपलोगो की इसी बहुतायत बुद्धि 
के कारण ही तो आपलोग दीनहीन पड़े हैं !

राजनीति में कोई पूछने वाला भी नहीं है आपलोगों को..

स्वर्णिम इतिहास होने के बावजूद विकास की धारा से हट चुके हैं आप लोग....

सब एक दूसरे की टांग खींचते हैं 
और सिर्फ अपना नाम बडा देखना 
चाहते हैं...

किसी को सहयोग नहीं करते...
काम करने वाले की आलोचना करते है... 
और नीचा दिखाते हैं...!

आज हर जाति में एकता देखने को मिलती है सिर्फ ब्राह्मण  को छोड़कर...!

जाइये साहब...पहले अपनी कौम को समझाइये और 
मुकाम हासिल करिए..!

और फिर आइयेगा मेरे पास... तो आप
जिस रेट में कहेंगे, उस रेट में आप लोगों  
 की बुद्धि बेचूंगा..!

मेरी जुबान पर ताला लग गया और 
मैं अपना सा मुंह लेकर चला आया !

इस छोटी सी कहानी के माध्यम से 
जो कुछ मैं कहना चाहता हूं,
आशा करता हूँ कि समझने वाले 
समझ गये होंगे !
 
और जो ना समझना चाहे 
वो अपने आपको 
बहुत बडा खिलाडी 
समझ सकते हैं..!

 *(नोट : कृपया इस पोस्ट को केवल ब्राह्मणों  के बीच आगे बढ़ाएँ और सुधार हेतु चर्चा करें )*    
 *🍁🍁जय श्री परशुराम
आप का तिवारी परिवार 

गुरुवार, 17 जून 2021

गहन रिसर्च के बाद एक दोहा अर्थ मील पाया है

*कल सुंदरकांड पढ़ते हुए 25 वें दोहे पर थोड़ा रुक गया । तुलसीदास ने सुन्दर कांड में,  जब हनुमान जी ने लंका मे आग लगाई थी, उस प्रसंग पर लिखा है -*

*हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास।*
*अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास।।25।।*

अर्थात : जब हनुमान जी ने लंका को अग्नि के हवाले कर दिया तो --
*भगवान की प्रेरणा से उनपचासों पवन चलने लगे।*
*हनुमान जी अट्टहास करके गर्जे और आकार बढ़ाकर आकाश से जा लगे।*

*मैंने सोचा कि इन उनचास मरुत का क्या अर्थ है ? यह तुलसी दास जी ने भी नहीं लिखा। फिर मैंने सुंदरकांड पूरा करने के बाद समय निकालकर 49 प्रकार की वायु के बारे में जानकारी खोजी और अध्ययन करने पर सनातन धर्म पर अत्यंत गर्व हुआ। तुलसीदासजी के वायु ज्ञान पर सुखद आश्चर्य हुआ, जिससे शायद आधुनिक मौसम विज्ञान भी अनभिज्ञ है ।*
        
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि *वेदों में वायु की 7 शाखाओं के बारे में विस्तार से वर्णन मिलता है*। अधिकतर लोग यही समझते हैं कि वायु तो एक ही प्रकार की होती है, लेकिन उसका रूप बदलता रहता है, जैसे कि ठंडी वायु, गर्म वायु और समान वायु, लेकिन ऐसा नहीं है। 

*दरअसल, जल के भीतर जो वायु है उसका वेद-पुराणों में अलग नाम दिया गया है और आकाश में स्थित जो वायु है उसका नाम अलग है। अंतरिक्ष में जो वायु है उसका नाम अलग और पाताल में स्थित वायु का नाम अलग है। नाम अलग होने का मतलब यह कि उसका गुण और व्यवहार भी अलग ही होता है। इस तरह वेदों में 7 प्रकार की वायु का वर्णन मिलता है।*

*ये 7 प्रकार हैं- 1.प्रवह, 2.आवह, 3.उद्वह, 4. संवह, 5.विवह, 6.परिवह और 7.परावह।*
 
1. प्रवह : पृथ्वी को लांघकर मेघमंडलपर्यंत जो वायु स्थित है, उसका नाम प्रवह है। इस प्रवह के भी प्रकार हैं। यह वायु अत्यंत शक्तिमान है और वही बादलों को इधर-उधर उड़ाकर ले जाती है। धूप तथा गर्मी से उत्पन्न होने वाले मेघों को यह प्रवह वायु ही समुद्र जल से परिपूर्ण करती है जिससे ये मेघ काली घटा के रूप में परिणत हो जाते हैं और अतिशय वर्षा करने वाले होते हैं। 
 
2. आवह : आवह सूर्यमंडल में बंधी हुई है। उसी के द्वारा ध्रुव से आबद्ध होकर सूर्यमंडल घुमाया जाता है।
 
3. उद्वह : वायु की तीसरी शाखा का नाम उद्वह है, जो चन्द्रलोक में प्रतिष्ठित है। इसी के द्वारा ध्रुव से संबद्ध होकर यह चन्द्र मंडल घुमाया जाता है। 
 
4. संवह : वायु की चौथी शाखा का नाम संवह है, जो नक्षत्र मंडल में स्थित है। उसी से ध्रुव से आबद्ध होकर संपूर्ण नक्षत्र मंडल घूमता रहता है।
 
5. विवह : पांचवीं शाखा का नाम विवह है और यह ग्रह मंडल में स्थित है। उसके ही द्वारा यह ग्रह चक्र ध्रुव से संबद्ध होकर घूमता रहता है। 
 
6. परिवह : वायु की छठी शाखा का नाम परिवह है, जो सप्तर्षिमंडल में स्थित है। इसी के द्वारा ध्रुव से संबद्ध हो सप्तर्षि आकाश में भ्रमण करते हैं।
 
7. परावह : वायु के सातवें स्कंध का नाम परावह है, जो ध्रुव में आबद्ध है। इसी के द्वारा ध्रुव चक्र तथा अन्यान्य मंडल एक स्थान पर स्थापित रहते हैं।
 
   *इन सातो वायु के सात सात गण हैं जो निम्न जगह में विचरण करते हैं-*

 ब्रह्मलोक, इंद्रलोक, अंतरिक्ष, भूलों की पूर्व दिशा, भूलोक की पश्चिम दिशा, भूलोक की उत्तर दिशा और भूलोक कि दक्षिण दिशा। इस तरह  7*7=49। कुल 49 मरुत हो जाते हैं जो देव रूप में विचरण करते रहते हैं।
  
 *है ना अद्भुत ज्ञान। हम अक्सर रामायण, भगवद् गीता पढ़ तो लेते हैं परंतु उनमें लिखी छोटी-छोटी बातों का गहन अध्ययन करने पर अनेक गूढ़ एवं ज्ञानवर्धक बातें ज्ञात होती हैं।*जय श्री राम
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आप का तिवारी परिवार जय श्री राम 

दूनीय की येही कहानी है

😥✅ एक बार एक लड़के ने एक सांप पाला , वो सांप से बहुत प्यार करता था उसके साथ ही घर में रहता .. एक बार वो सांप बीमार जैसा हो गया...